कितनी शिद्दत से चाहा था,
दोनों ने इक दूजे को।
साथ निभाया जनमों जनम का,
दूर हुए ना इक पल को।
जीवन की हर राहें देखीं,
चलते रहे संग साथी के।
साथ रहे दोनों यूँ हर पल,
दिया संग जैसे बाती के।
विदा हुई अपने साथी से,
बनकर सदा सुहागन वो।
राह देखती रही स्वर्ग में,
अपने जीवनसाथी की वो।
अपने जीवन में ही उन दोनों ने,
जाने का समय बताया था।
आगे होगा कैसा जीवन ये मेरा,
मुझको सदा चेताया था।
पर मैं ना समझ सका उनकी,
थीं जो बातें सही।
उनके जाने पर ही मैंने जाना,
थीं सारी बातें सही।
अब तो बस गुज़री यादें हैं,
अपने दिल को बहलाने को।
क्या कहूँ मैं कितना तड़पता हूँ,
फिर से आप से मिलने को।