कर्ण का अंतिम संस्कार
महाभारत के युद्ध में जब कर्ण को अर्जुन ने मृत्युशय्या पर लिटा दिया तो श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को महात्मा का भेस धारण करके आने को कहा और वह दोनो महात्मा के भेस में कर्ण के समीप पहुंचे श्री कृष्ण यह भलि भांति जानते थे कि कर्ण एक महान दानवीर है परन्तु वह अर्जुन को उसकी महानता से अवगत करवाना चाहते थे इस लिए उन्होंने अर्जुन के सामने कर्ण की दानवीरता की परीक्षा लेना चाही।
श्री कृष्ण ने मृत्युशय्या पर लेटे हुए कर्ण से भिक्षा मांगी तो कर्ण ने कहा हे महात्माओ मेरे प्राण पंखेरू उड़ रहें हैं मेरी स्थिति दयनीय है ऐसी अवस्था में मेरे पास आप को देने के लिए कुछ नहीं है तब श्री कृष्ण ने कहा हम तो तुम्हारा बहुत नाम सुनकर तुम्हारे पास आए थे वत्स पर अवसोस हमें लगता है कि हमें यहां से खाली हाथ ही जाना पड़ेगा।
तब कर्ण ने कहा तनिक रूकिए महात्मा उसने अपनी कटार से अपने सोने के दांत को निकालकर महात्मा की तरफ कर दिया तब श्री कृष्ण बोले वत्स महात्मा रक्त से भीगी हुई वस्तु दान स्वरूप ग्रहण नहीं करते।
तब कर्ण ने अपने धनुष बाण से भूमि से जल धारा को प्रकट कर सोने के दांत को उस पानी से साफ कर महात्माओ को अर्पित किया इस पर महात्मा श्री कृष्ण ने उसे स्वर्ग जाने का आशीर्वाद दिया।
परन्तु यमराज देवता ने कर्ण को स्वर्ग भेजने की एक शर्त रख दी कि कर्ण को स्वर्ग तभी मिल सकता है यदि उसका अंतिम संस्कार किसी ऐसी भूमि पर हो जहां कोई पाप ना हुआ हो अब भगवान कृष्ण बड़ी दुविधा में फस गए और पूरी पृथ्वी पर ऐसी जगह खोजने लगे जहाँ कोई पाप ना हुआ हो तो बहुत मुश्किल के बाद उन्हें पांव के अंगूठे जितनी धरती मिली यहां कोई पाप नहीं हुआ था तब भगवान कृष्ण ने पैर के अंगूठे पर खड़े होकर विराट रूप धारण कर कर्ण का अंतिम संस्कार अपने हाथ पर किया और इस तरह दानवीर कर्ण को मृत्यु के पश्चात स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
वह तो द्वापर युग था तब मात्र पांव के अंगूठे जितनी भूमि पाप विहिन बची थी अब तो घोर कलयुग चल रहा है।