शिक्षा का मकसद होता है इंसान को किसी काबिल बनाना ताकि वह अपने पैरों पर खड़ा होकर एक आदर्श नागरिक बन सके जिससे वह अपना और समाज का भला कर सकता इससे उसके मुल्क का भला होना स्वाभाविक बात है।
विद्या के विषय में चाणक्य जी का मत है
कामधेनुगुणा विद्या ह्ययकाले फलदायिनी। प्रवासे मातृसदृशा विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्॥
विद्या कामधेनु गाय के समान है, जो बुरे समय में भी साथ देनेवाली है, प्रवास काल में माँ के समान रक्षा करती है। यह एक प्रकार का गुप्त धन है जिसे कोई भी चुरा नहीं सकता।
पर यहां तक आज के भारत की शिक्षा व्यवस्था का प्रश्न है तो इसके हालात बहुत नाज़ुक है वर्तमान समय भारत में शिक्षा एक व्यापार बन चुकी है शिक्षा का अधिकार केवल पैसे वालों तक ही सीमित होता जा रहा है
कैसे ?
वर्तमान समय में प्रत्येक अभिभावक की यह आशा रहती है के उनके बच्चे अच्छी से अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके इसके लिए वह उनकी पड़ाई के लिए बैंकों से कर्ज़ लेने में भी गुरैज नहीं करते यह तो मंहगी पड़ाई की एक बात है आज कल तो नर्सरी में एडमिशन करवाने में ही अभिभावकों के पसीने छुट जाते है एजेंटों की मार और महंगे डोनेशन उनकी कमर तोड़ने के लिए काफी है।
आप कहेंगे की हैं शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत सरकार की इन स्कूलों को कड़ी हिदायत है कि प्राइवेट स्कूल में एडमिशन के लिए गरीब बच्चों के लिए economically weaker section EWS के तहत 25% कोटा रिजर्व है।
जिसके तहत इन्हें गरीब घर के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करनी होगी वो तो ठीक है पर ड्रेस पिकनिक मंहगी किताबों का बोझ ना उठा पाने के कारण अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकलवाकर पुनः सरकारी स्कूलों में हि डलवा देते हैं इसका दूसरा कारण यह भी है कि उनके बच्चे जब इन अमीर घरों के बच्चों की रीस करने लगते हैं तो अभिभावकों के लिए और परेशानी बड़ जाती है जिस कारण वो बच्चों को स्कूल से निकलवाना ही उचित समझते हैं
सरकारी स्कूलों के हालात आप सब को पता है जब तक प्राइवेट स्कूल का छटी जमात का विद्यार्थी अंग्रेजी का अखबार पड़ने लायक हो जाता है तब तक सरकारी स्कूल का बच्चा colour name ही सिख रहा होता है
अच्छी परसनटेज लाने के लिए विद्यार्थीयों को लग्न के साथ साथ योग्य टीचरों का मार्ग दर्शन की भी आवश्यकता होती है तभी उन्हे अच्छे कालेजों मे एडमिशन मिल पाता है सरकारी स्कूल के अध्यापक शिक्षा के नाम पर टयूश्न पड़ाने के बहाने बच्चों का शोषण करते नजर आते हैं। या बच्चो के अभिभावक नामी टयूश्न सेंटरों में मोटी टयूश्न फीस भरते नजर आते है ताकि उनके बच्चे अच्छे नम्बरों से पास हो जाए।
प्राईवेट स्कूलों के विद्यार्थी अंग्रेजी में अच्छी पकड़ के कारण एंट्रेस एग्जाम असानी से पास कर लेते हैं वहीं सरकारी स्कूलों के केवल कोटे के विद्यार्थी ही कुछ बेहतर कर पाते हैं।
कम नम्बर आने पर विद्यार्थियों को अपने पसंदीदा विषय के चुनाव के लिए एजेंटों का शिकार होना पड़ता है यहाँ वह एडमिशन करवा देने के नाम पर उनसे मोटी रकम ऐटते है
पिछले दिनों अखबार में पढ़ा के एक दम्पति ने जहर खाकर जान दे दी कारण बेटे का सपना था डाक्टर बनना नम्बर कम थे एजेंट के चक्कर में फस गए भारी कर्ज़ उठा लिया बच्चे का एडमिशन भी नहीं हुआ और एजेंट ने पैसे वापिस करने से भी मना कर दिया नतीजा क्या निकला घर बरबाद हो गया।
बी एड करवाने वाले विज्ञापनों से आज की अखबारे भरी पड़ी है यह संस्थान भी बच्चों का शोषण ही करते हैं बी एड करने के बाद भी यदि उन्हें रिश्वत दे कर ही सरकारी अध्यापक लगना है तो ऐसे अध्यापक बच्चों को क्या नैतिकता पाठ पड़ा पाएंगे।
महाराज प्रारंभिक शिक्षा की बात छोड़िए पी एच डी तक की डिग्री ऐजेंट दिलवाने का दावा करते नजर आते हैं इससे शोध कार्यों का स्तर भी काफी गिर गया है कापी पेस्ट की मदद से शोध पत्र लिखे जा रहें हैं
कुल मिलाकर बात स्पष्ट है कि भारत में शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम केवल कागजों मे ही सफल होता नजर आता है
भारत के कई देहाती गांवों में तो स्कूलों की इमारतें जरूर हैं पर उनमें शिक्षकों का अकाल है कई जगह तो यह इमारतें भी खंडरों में तब्दील हो चुकी है जो कभी भी किसी बड़े हादसे को जन्म दे सकती हैं
अरे भाई नेताओं अभिनेताओं पूंजीपतियों यहाँ तक सरकारी स्कूलों के अध्यापकों के बच्चे भी नामी प्राईवेट संस्थानों में पड़ते है या विदेशों में पड़ते है क्यों
क्योंकि वह पड़ाई का महत्व समझते हैं उन्हें भारत की शिक्षा व्यवस्था का हाल अच्छी तरह से पता है खैर उन्हें इससे क्या लेना देना यहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला है
स्कूल आफ ओपन लर्निंग से रोल नम्बर तो समय पर घर पहुंचता नहीं आप उनसे मार्कशिट समय पर पहुचचाने की आशा करतें है
ईसाई मिशनरी शिक्षा का महत्व समझते हैं वो इसके बल पर गांव देहाती इलाकों में धर्म परिवर्तन करने पर जुटे हुए हैं