गरीब दा मुंह गुरू दी गोलक
एक व्यक्ति पैदल घर जा रहा था। रास्ते में एक बिजली के खंभे पर एक कागज लगा हुआ था उसने पास जाकर देखा तो उस पर लिखा हुआ था कि इस रास्ते पर मेरा कल एक 50₹ का नोट गिर गया है। मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता। जिसे भी मिले कृपया इस पते पर दे सकते हैं। यह पढ़कर पता नहीं क्यों उस व्यक्ति कि उस पते पर जाने की तीव्र इच्छा हुई । जब वह पास ही में एक गली के कौने वाले उस घर पर पहुंचा तो वहाँ जाकर उसने जब आवाज लगाई तो एक वृद्धा लाठी के सहारे धीरे-धीरे बाहर आई। वह समझ गया कि वह अकेली रहती है और उसे ठीक से दिखाई भी नहीं देता। उसने धोरे से कहा "माँ जी" - "आपके खोए हुए 50₹ मुझे मिलें है उसे देने आया हूँ यह सुन वह वृद्धा रोने लगी और बोली बेटा सुबह से करीब 30-40 व्यक्ति मुझे इसी तरह 50-50 ₹ दे चुके हैं में अनपढ़ बेसहारा हूँ ठीक से दिखाई भी नहीं देता पता नहीं कौन मेरी इस हालत को देख मेरी मदद करने के लिए खंबे पर ना जाने क्या लिख गया है जो तुम लोग आ रहे हो व्यक्ति के बहुत समझाने पर माँ ने पैसे तो रख लिए पर एक विनती की बेटा वहां मैंने कुछ नहीं लिखा है किसी ने मुझ पर तरस खाकर ना जाने क्या लिख दिया है बेटा जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना मेरी गरीबी का मजाक ना बनाओ वह व्यक्ति हाँ कहकर चल तो दिया पर उसकी अंतरात्मा ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उन 30-40 लोगों से भी "माँ" ने यही कहा होगा जो मुझसे पहले आए थे पर किसी ने भी वह कागज नहीं फाड़ा तो फिर में यह पाप क्यों करूँ और मन ही मन उस व्यक्ति का हृदय उस अनजाने व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से भर गया जिसने इस वृद्धा की मदद का यह उपाय खोजा था।
मित्रों जिंदगी में हम कितने सही और कितने गलत है यह तो सिर्फ दो ही लोग जानते है स्वयं हम और नीली छतरी वाला।
मदद के तो बहुत से मार्ग हैं पर इस तरह की मदद हमारे हृदय को छू जाती मदद के तरीके कई हैं सिर्फ नेक कर्म करने की मन में तीव्र इच्छा होनी चाहिए।
हमें कुछ नेकियां और अच्छाइयां अपने जीवन में ऐसी भी करनी चाहिए जिनका ईश्वर के सिवाय और कोई और गवाह ना हो।