महान कर्ण
महाभारत के युद्ध में अर्जुन और कर्ण के बीच घमासान युद्ध चल रहा था अर्जुन का तीर लगने पे कर्ण का रथ 25-30 हाथ पीछे खिसक जाता और कर्ण के तीर से अर्जुन का रथ मात्र सिर्फ 2-3 हाथ हि खिसकता।
इससे अर्जुन को अपने बाहुबल पर अभिमान होने लगा और वह कहने लगा देखा प्रभु मेरे प्रहारो को लेकिन श्री कृष्ण थे की कर्ण के प्रहारो पर वाह कर्ण वाह कर्ण बहुत अच्छे कहकर उसकी तारीफ किए जा रहे थे जबकि अर्जुन की तारीफ़ में कुछ ना कहते।
इस से अर्जुन बड़ा व्यथित हुआ, उसने पूछा , हे पार्थ आप मेरे शक्तिशाली प्रहारों की बजाय उसके कमजोर प्रहारों की तारीफ़ कर रहे हैं, ऐसा क्या कौशल है उसमे।
श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले, इसका जवाब में तुम्हें युद्ध समाप्त होने के बाद दूंगा अभी तुम केवल और केवल युद्ध पर ध्यान दो बस
युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन को पहले उतरने को कहा और बाद में स्वयं उतरे जैसे ही श्री कृष्ण रथ से उतरे रथ स्वतः ही भस्म हो गया
यह देख अर्जुन हैरान रह गया श्री कृष्ण अर्जुन की तरफ देख कर मुस्कुराये और बोले वत्स तुम्हारे रथ की रक्षा के लिए ध्वज पर हनुमान जी, पहियों पर शेषनाग जी और सारथि के रूप में स्वयं नारायण विराजमान थे इसके बावजूद भी यदि कर्ण के प्रहारो से अगर यह रथ एक हाथ भी खिसकता था तो उसके पराक्रम की तारीफ़ तो बनती थी वत्स
यह रथ तो कर्ण के प्रहारो से कब का भस्म हो चूका था, पर इस पर महान शक्तियाँ विराजमान थी इसलिए यह टिका रहा रहा यह देख अर्जुन का सारा घमंड चूर चूर हो गया।
कभी भी जीवन में सफलता मिले तो घमंड मत करना, कर्म तुम्हारे हैं पर आशीष ऊपर वाले की है और किसी को परिस्थिति वष कमजोर मत समझना हो सकता है उसके बुरे समय में भी वो जो कर रहा हो वो आपकी क्षमता से कहीं बाहर की बात हो।