THE GREAT FATHER
हमारे पिता जी एक महान शख्सियत थे ना केवल इसलिए की वो एक आदर्श पिता थे बल्कि इस लिए भी कि वो इसके साथ साथ एक आदर्श मित्र भाई दोस्त पति और सलाहकार भी थे उन्होंने कभी भी किसी को गलत राय नहीं दी अगर किसी से कोई भूल हो भी जाती तो वह तुरंत उसे माफ कर देते उनका स्वभाव बहुत सरल था इस कारण बहुत लोग उनको प्यार करते थे वह अपने निंदकों की बातों से कभी भी विचलित नहीं होते थे बल्कि वह उनकी बातों को प्रेरणा दायक मानते थे जीवन पर्यन्त उन्होंने श्री सुखमनी साहिब सेवा सोसायटी करोल बाग के साथ जुड़कर संगतों की सेवा की और उन्हें गुरु ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं के साथ जोड़ा उनमें वे सारी योग्यताएं मौजूद थी जो एक श्रेष्ठ व्यक्ति में होती हैं।
सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने कभी रिशवत नहीं ली और बेदाग अपना कार्यकाल पूरा किया इस दौरान उन्होने कई गरीबों का भला ही किया।
वे हमारे लिए केवल एक पिता ही नहीं बल्कि सबसे अच्छे दोस्त भी थे, जो समय-समय पर हमें अच्छी और बुरी बातों का आभास कराकर आगाह करते थे। पिता जी हमें हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए हमारा हौसला बढ़ाते थे वह एक अच्छे मार्गदर्शक थे हर बच्चा अपने पिता से ही सारे गुण सीखता है जो उसे जीवन भर परिस्थितियों के अनुसार ढलने के काम आते हैं। उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता था जो कभी खत्म नहीं होता। उनकी कुछ प्रमुख विशेषताएं उन्हें दुनिया में सबसे खास बनाती है जैसे -
धीरज-पिताजी का सबसे महत्वपूर्ण गुण था सदैव हर समय धीरज से काम लेते थे और कभी आपा नहीं खोते थे। हर परिस्थिति में वे शांति से सोच समझ कर आगे बढ़ते थे और गंभीर से गंभीर मामलों में भी धैर्य बनाए रखते थे।
संयम - वे बहुत संयमी थे हमेशा संयमित व्यवहारकुशलता से हर कार्य को सफलता पूर्वक समाप्त करते थे। वे कभी मुझ पर या मां पर बिना वजह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा नहीं करते थे।
अनुशासन- सरकारी नौकरी के कारण उन्हें अनुशासन बहुत पसंद था पिताजी हमेशा हमें अनुशासन में रहना सिखाते वे खुद भी अनुशासित रहते थे सुबह से लेकर रात तक उनकी पूरी दिनचर्या अनुशासित होती थी। वे सुबह समय पर उठकर दैनिक कार्यों से नि़वृत्त होकर ऑफिस जाते थे और समय पर लौटते थे हर रविवार को वो सुबह 5 बजे श्री सुखमनी साहिब सेवा सोसायटी के कार्यक्रम में पहुंच जाते थे।
गंभीरता - पिता जी जीवन के प्रति ज्यादा गंभीर नहीं थे वह जीवन मृत्यु को भगवान का खेल समझते थे और सुख दुख को क्रमों का निबेड़ा ।
दबाव - उन्होंने कभी भी पड़ाई हो या कोई अन्य विषय हम पर दबाव नहीं बनाया हमें स्वतंत्रता पूर्वक निर्णय लेने दिया अपनी महत्वाकांक्षाओं को कभी भी हमारे ऊपर नहीं थोपा।
गुस्सा - पिता जी को गुस्सा कभी नहीं आता था दसवीं के बाद से उन्होंने हमें डाटना भी छोड़ दिया था हां माता जी की लम्बी बीमारी को देखते हुए वह कभी खिज जाते थे पर अगले ही पल शांत हो जाते थे।
निडरता - वह गलत बात का निडरता से विरोध करते थे गलत व्यक्ति का कभी साथ नहीं देते थे उसके साथ भी कभी खड़े नहीं होते थे।
बड़ा दिल - पिताजी का दिल बहुत बड़ा था वह हमारी बड़ी से बड़ी गलती को भी हमेशा कुछ देर मौन रहने के बाद माफ कर देते थे। मेरी नोकरी ना लगने के कारण भी वह मुझे कभी कुछ नहीं कहते थे बस हमेशा प्रयास करते रहने की सलाह देते थे।
21 मार्च को वह अपनी जीवन यात्रा समाप्त करते हुए प्रभु जी के चरणों में जा बैठे इस दौरान पूरी सुखमनी साहिब सेवा सोसायटी के सदस्यों उनके मित्रों हमने और रिशतेदारों ने उन्हें नमन आंखों से विदाई दी। इस मौके पर गुरूबाणी की एक पंक्ति
" गुरमुखि जनमु सवारि दरगह चलिआ सची दरगह जाइ सचा पिडु मलिआ"
मुझे जीवंत होते हुए प्रतित हुई।
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