गलत तरीकों से अर्जित आय का दान देने से पाप बढ़ता है।
एक बार गांव की चौपाल सजी हुई थी वहां पहले दो मांगने वाले आए तो गांव के भामा शाह ने उन्हें 10 ₹ दिए कुछ देर बाद वहां फिर एक मांगने वाला आया तो गाँव के साधारण व्यक्ति ने उसे 5 ₹ दिए।
चौपाल से थोड़ी दूर बैठा साध अपने दो शिष्यों के साथ यह सारा नजारा देख रहा था उसने अपने एक शिष्य को पहले दो मांगने आने वालों के पीछे भेजा तथा दूसरे को बाद में मांगने आए व्यक्ति के पीछे।
दोनों चेले जब वापिस आए तो पहले चेले ने बताया महाराज उन दोनों व्यक्तियों ने तो मांगे हुए पैसों की दारू पी दूसरे शिष्य ने बताया बाबा बाद में मांगने आने वाला व्यक्ति भोजन खरीद कर अपने घर ले गया। तभी पहले शिष्य ने पूछा बाबा आखिर ऐसा क्यों हुआ कि उन दोनों ने दारू पी और उसने भोजन खरीदा तो साध ने जवाब दिया भामा शाह ब्याज पर पैसा देता है तथा और भी गलत तरीकों से धन कमाता है इस कारण पाप की कमाई के दान से पाप ही उपजा वहीं दूसरी और दिहाड़ी पर काम करने वाला वह साधारण मेहनतकश मजदूर है जो बड़ी मेहनत से धन कमाता है इस लिए उसके द्वारा धर्म की कमाई का दान देने से धर्म उपजा।