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कर्पूर मंजरी - सट्टक

26 जनवरी 2022

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दोहा

भरित नेह नव नीर नित, बरसत सुरस अथोर।
जयति अपूरब घन कोऊ, लखि नाचत मन मोर ।

(सूत्रधार आता है)

सूत्रधार : (घूमकर) हैं क्या हमारे नट लोग गाने बजाने लगे? यह देखो कोई सखी कपड़े चुनती है, कोई माला गूंधती है, कोई परदे बांधती है, कोई चन्दन घिसती है; यह देखो बंसी निकली, यह बीन की खोल उतरी, यह मृदंग मिलाए गए, यह मंजीरा झनका, यह धुरपद गाया गया। (कुछ ठहर कर) किसी को बुलाकर पूछे तो (नेपथ्य की ओर देख कर) अरे कोई है? पारिपाश्र्वक आता है।

पारि. : कहो, क्या आज्ञा है?

सूत्र. : (सोच कर) क्या खेलने की तैयारी हुई?

पारि. : हां, आज सट्टक न खेलना है।

सूत्र. : किस का बनाया?

पारि. : राज्य की शोभा के साथ अंगों की शोभा का; और राजाओं में बड़े दानी का अनुवाद किया।

सूत्र. : (विचार कर) यह तो कोई कूट सा मालूम पड़ता है (प्रगट) हां हां राजशेखर का और हरिश्चन्द्र का।

पारि. : हां, उन्हीं का।

सूत्र. : ठीक है, सट्टक में यद्यपि विष्कम्भक प्रवेशक नहीं होते तब भी यह नाटकों में अच्छा होता है। (सोच कर) तो भला कवि ने इस को संस्कृत ही में क्यों न बनाया, प्राकृत में क्यों बनाया?

पारि. : आप ने क्या यह नहीं सुना है?

जामैं रस कछु होत है, पढ़त ताहि सब कोय।

बात अनूठी चाहिए, भाषा कोऊ होय ।

और फिर

कठिन संस्कृत अति मधुर भाषा सरस सुनाय।

पुरुष नारि अन्तर सरिस, इन में बीज लखाय ।

सूत्र. : तो क्या उस कवि ने अपना कुछ वर्णन नहीं किया?

पारि. : क्यों नहीं, उस समय के कवियों ने चन्द्रमा अपराजितन ही ने उसका बड़ा बखान किया है।

निरभर बालक राज कवि, आदि अनेक कबीस।

जाके सिखए तें भए, अति प्रसिद्ध अवनीस ।

धवल करत चारहु दिसा, जाको सजस अमन्द।

सो शेखर कबि जग विदित, निज कुल कैरव चन्द ।

सूत्र. : पर भला आज तुम को किस ने खेलने की आज्ञा दी है?

पारि. : अवन्ती देश के राजा चारुधान की बेटी उसी कवि की प्यारी स्त्री ने, और यह भी जान रक्खो कि इस सट्टक में कुमार चन्द्रपाल कुन्तल देश की राजकुमारी को ब्याहेगा। तो अब चलो अपने-अपने स्वांग सजैं, देखो तुम्हारा बड़ा भाई देर से राजा की रानी का भेस धर कर परदे के आड़ में खड़ा है।

(दोनों जाते हैं) 

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रचनाएँ
कर्पूर मंजरी
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कर्पूरमंजरी संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार एवं काव्यमीमांसक राजशेखर द्वारा रचित प्राकृत का नाटक (सट्टक) है। प्राकृत भाषा की विशुद्ध साहित्यिक रचनाओं में इस कृति का विशिष्ट स्थान है।इन सबमें कर्पूरमंजरी सर्वोत्कृष्ट और प्रौढ़ रचना है। राजशेखर का संस्कृत और प्राकृत भाषाओं पर असाधारण अधिकार था। वे सर्वभाषानिषणण कहे जाते थे। कर्पूरमंजरी की प्राकृत प्रौढ़ एवं प्रांजल है।
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कर्पूर मंजरी - सट्टक

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दोहा भरित नेह नव नीर नित, बरसत सुरस अथोर। जयति अपूरब घन कोऊ, लखि नाचत मन मोर । (सूत्रधार आता है) सूत्रधार : (घूमकर) हैं क्या हमारे नट लोग गाने बजाने लगे? यह देखो कोई सखी कपड़े चुनती है, कोई माला ग

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पहिला अंक

26 जनवरी 2022
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स्थान: राजभवन (राजा, रानी, विदूषक और दरबारी लोग दिखाई पड़ते हैं) राजा : प्यारी, तुम्हें बसन्त के आने की बधाई है, देखो अब पान बहुत नहीं खाया जाता, न सिर में तेल देकर कस के गूंधी जाती है, वैसे ही चोली

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दूसरा अंक

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स्थान राजभवन (राजा और प्रतिहारी आते हैं) प्र. : इधर महाराज इधर। राजा : (कुछ चलकर सोच से) हा! उस समय यह यद्यपि कुच नितम्ब भार से तनिक भी न हिली, परन्तु त्रिबली केतरंग भय श्वास से चंचल थे, और गला त

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तीसरा अंक

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स्थान राजभवन (राजा और विदूषक आते हैं) राजा : (स्मरण करके)। उसकी मधुर छबि के आगे नया चन्द्रमा, चम्पे की कली, हलदी की गांठ, तपाया सोना और केसर के फूल कुछ नहीं हैं। पन्ने के हार और मालती की माला से शोभ

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चौथा अंक

26 जनवरी 2022
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(राजा और बिदूषक आते हैं) राजा : अहा! ग्रीष्म ऋतु भी कैसा भयानक होता है! इस ऋतु में दो बातैं अत्यन्त असह्य हैं-एक तो दिन की प्रचण्ड धूप, दूसरे प्यारे मनुष्य का वियोग। विदू. : संसार में दो प्रकार के म

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