कुदाल से न टूटने बाली मजबूत पर्वत श्रंखलांऐं धीरे धीरे कुछ टूटतीं पानी के प्रवाह में नदियों से बहकर मैदानों तक पहुंचे पर्वत पाषाण के टुकड़े बिखर रहे किनारे नदियों के एक गौरवशाली इतिहास के स्वामी आज रे
ज्ञानियों में मूर्धन्य देवगुरु के शिष्य ज्ञान के आचार्य क्या सत्य ज्ञानी कुछ गलतफहमी से घिरे ज्ञान तो प्रेम है प्रेम ही जीवन प्रेम ही पूजा प्रेम ही उच्चता सखा श्याम के भेजा श्याम ने ज्ञान बांटने हेत
अक्सर मन लगता सोचने कुछ अलग हटकर दिन आखरी जिंदगी का होता कब श्वास बंद हो जाये शरीर शांत हो जाये दिल न धङके वही ना। पर दिख जाते कई जिंदा भी ढो रहे जीवन को दिन जिंदगी का आखिरी लिया देख जिन्होंने जिंदा र
खुद की ताकत पर इतराकर पद का वैभव दिखलाकर ऐश्वर्य से जग को झुकाकर रूप पर इठलाकर कोई सो गया चुपचाप मुलायम गद्दों पर सोने का आदी सो रहा भूमि नीचे बिना हिले डुले इस कब्र में चुपचाप सैकङों हैक्टेयर भूमि का
खुद की ताकत पर इतराकर पद का वैभव दिखलाकर ऐश्वर्य से जग को झुकाकर रूप पर इठलाकर कोई सो गया चुपचाप मुलायम गद्दों पर सोने का आदी सो रहा भूमि नीचे बिना हिले डुले इस कब्र में चुपचाप सैकङों हैक्टेयर भूमि का
पुष्प एक बगिया का मुस्करा रहा था खुद की जमीन खुद की डाली जानी पहचानी हवा जाने पहचाने लोग साथ अपनों का क्या कमी खुशियों में एक रोज तोड़ लिया माली ने गुलदस्ता बनाने को किसी को खुश करने को राजा या अधिकार
आज राधा रूठी है प्रभु क्रीङा की याद पवित्र वृन्दावन धाम निकट राधा बल्लभ रहतीं विधवा नारि कहाती आनंदी माँ पूजती प्रभु श्याम रख वात्सल्य भाव सुत बना घनश्याम ज्यों हो नंदरानि आज राधा रूठी है रहतीं भावलो
अमर गाथा प्रेम की एक थी लैला शहजादी बगदाद की खलीफा की लाङली पली ऐशोआराम में हर ख्वाहिश को रखती मुट्ठी में क्या नामुमकिन खलीफा की प्यारी शहजादी को एक था मजनू अनाथ और असहाय पा गया पनाह खलीफा के महल म
मैं रवि अनंत आकाश का उदित होते ही फैला रहा प्रकाश खुद तपकर भी तिमिर को हराता जग को हसाता पुष्पों को खिलाता खगों की चहचहाहट कृषकों की मेहनत उल्लास का द्योतक मेरा खुद तप जाना अंगारों का साथ कै
आज निःशव्द हो जाऊं दिल की बात पी जाऊं बातें अनेकों उमङती मन भीतर मन सागर में डुबा दूं उनको कहीं भीतर गहराई पर छिपाकर मोतियों को लूं छिपा जग से यह चांद बङा बेदर्दी है क्या जिद ठान बैठा है चंद्र
जल और मानव मन कुछ एक जैसे नीचे गिरते जाते उठना नहीं आसान हैंडपंप एक साधक का पर्याय नीचे से मन को उच्चता प्रदान करता विचारों में उच्चता उच्च समाज का निर्माण सम्मान नारियों का कमजोर पर दया जीव में ई
काॅफी और चाय लगता दो बहनें हैं शायद सौतेली अलग माताओं की बेटियां लगता चाय बङी बहन है उसकी माॅ का निधन विपत्ति दे गया पिता एक पुरुष बेटी को पालना कहाॅ आसान कर ली दूसरी शादी दलील बेटी को माॅ म
कीमत पानी की बूॅदों की जानो मरुभूमि में रेत के अंबार में दो बूदें जल की कंठ तर कर देतीं अम्रत से अधिक ही कीमत पानी की बूॅदों की जानतीं अंखियाॅ अनगिनत नफरत, पश्चाताप दुख भरी यादों कों बहा ले जातीं बूॅद
यह जिंदगी खेल शतरंज का इंसान प्यादे कोई हाथी शक्ति का पर्याय सीधा ही चलता ऊंट की टेड़ी चाल अश्व स्वार्थ का पर्याय नजर रखता कुछ दूर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष से अलग स्वार्थ सिद्ध करना है ढाई चाल चलता सभी
जीवन किसके हाथ में न हमारे, न आपके अध्यात्म कहता कोई अज्ञात शक्ति जिसने दुनिया बनायी वही जीवन देता जिदगी छीन भी लेता जीव एक पथिक चलता रहता कभी रुक जाता सराय में वही उसका जीवन फिर निकल लेना निज
जिंदगी से पूर्व कौन कहाॅ था किस हाल में किसके पास था भी या नहीं या आरंभ जीवन ही अंत मौत से अनेकों रहस्यों से भरा ज्ञान भी विज्ञान है भौतिक विज्ञान से अलग पराविज्ञान भी है जिंदगी से पूर्व मौत के बाद का
वह मछुआरा रोज पकड़ता मछलियां एक छोटी सी नाव दूर सागर तक जाता भर लाता मछलियां ढेर के ढेर बाजार में दे आता यही आजीविका थी उसकी देख तड़पती मीन को मन न तड़पा कभी उसका बचपन का आदी मीन तो भोज्य थीं सजीव न थ
मैं कविता हूँ शुद्ध अंतर्मन में छिपे उद्गार धर रूप शव्दों का बाहर आ जाते मैं कविता हूँ जन्म मृत्यु से परे अवतार धारणा का रूप प्रत्यक्ष कब जन्म लेती अवतरित होती हूं मैं कविता हूँ अवतरित
ललक एक उड़ान की आसमान से करना बातें खेलना रुई सम बादलों संग चिडियों सा उड़ जाऊं बन जहाज हवा का निहारूं भू को उड़ते हुए आसमान से ऊपर से नजर कौन हिंदू, मुगल सवर्ण या दलित कृष्ण या गौर दुर्बल या बलवान
भोर भयो सखि चल पनघट पे सुन धुन मुरली की छोरा नंद को आ पहुंचो पनघट पे दीवानी हम प्रेम में सखियां किशोरी की प्राणों में बसे नंदलाल हमारे हैं सहस्र घटों में भरा नीर एक रवि का बिंब सभी में समाया ह