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कविता

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कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहेकत्ल करने वाले, अख़बार देखते रहे|तेरी रूह को चाहा, वो बस मै थाजिस्म की नुमाइश, हज़ार देखते रहे||मैने जिस काम मे ,उम्र गुज़ार दीकैलेंडर मे वो, रविवार देखते रहे||जिस की खातिर मैने रूह जला दीवो आजतक मेरा किरदार देखते रहे||सूखे ने उजाड़ दिए किसानो के घरवो पागल अबतक सरकार

सुबह निकलने से पहले ज़राबैठ जाता उन बुजुर्गों के पासपुराने चश्मे से झांकती आँखेंजो तरसती हैं चेहरा देखने कोबस कुछ ही पलों की बात थी  ________________लंच किया तूने दोस्तों के संगकर देता व्हाट्सेप पत्नी को भीसबको खिलाकर खुद खाया यालेट हो गयी परसों की ही तरहकुछ सेकण्ड ही तो लगते तेरे ________________निक

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हां ! हमनें गांधी को मारा दियाक्‍योंकि वह करता था आदर्श की बातें?क्‍योंकि वह चलता था सचाई-नैतिकता की राह परउसकी दी हुई आजादी हमें नहीं भाई,हम आजादी नहीं चाहते थेहम चाहते थे स्वतंत्रता के नाम परअराजकता एक अव्‍यवस्‍थाजो आजादी आज हम ढो रहे हैवो नहीं है गांधी के सपनों की आजादीबदला इस इस आजादी से कुछ भी

हाशिये पर से अपनी आँखों को शून्य में टांगकर हाशिए पर से देखा किया मैंने सुबह दोपहर और शाम का बारी-बारी से घर की दहलीज़ पर आना और देह चुराकर चला जाना दिन भर कई छोरों सेहोती र

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काव्य को मानव-जीवन की व्याख्या माना जाता है। मानव जीवन पर्याप्त विस्तृत-व्यापक है। मानवेत्तर प्रवत्ति भी मानव जीवन से सम्बद्ध है क्योंकि उसका भी मानव से नित्य संबंध है। फलतः कविता के विषय की सीमा आंकना सहज-संभव नहीं। मानव-जीवन और मानवेत्तर प्रकृति का प्रत्येक क्षेत्र, अंग, भाव-विचार, प्रकृति-प्रवृत्

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शब्दनगरी यूज़र्स के लिए सुनहरा मौका, इस मंच पर आयोजित कविता प्रतियोगिता में भाग लीजिये| इस कविता प्रतियोगिता का विषय, "हमारी मातृ-भाषा: हिंदी" है|प्रतियोगिता के लिए २-४ पंक्तियों में कविता लिखे|चुनी गयी, सर्वेष्ठ् कविताओं को रचनाकार के नाम के साथ शब्दनगरी मंच पर, प्रकाशित किया जायेगा|

हे कलियुग तेरी महिमा बड़ी अपारमानव ह्रदय कर दिया तूने तार-तारअब तो भाई , भाई से लड़ते हैंबाप भी माई से लड़ते हैंबेटी , जमाई से लड़ती हैसब रिश्तों में डाली तूने ऐसी दरारउजड़ गए न जाने कितने घर-परिवारहे कलियुग तेरी महिमा बड़ी अपार | अच्छाई को बुराई के सामने तूनेघुटने टेकने पर मजबूर कियाअपने , सपनों से कित

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'कविता' साहित्य भाषा के माध्यम से जीवन की मार्मिक अनुभूतियों की कलात्मक अभिव्यक्ति है। इस अभिव्यंजना के दो माध्यम माने गए हैं---गद्य और पद्य। छंदबद्ध, लयबद्ध, तुकान्त पंक्ति ही पद्य मानी जाती है जिसमें विशिष्ट प्रकार का भाव-सौंदर्य, सरसता और कल्पना का पुट होता है। मात्र छंदबद्ध रचना तब तक कविता नहीं

पापा लाएवन पिजनमम्मी लाईटू डॉग्सथ्री कैट्स देख मगर शिक्षाने मचाया शोर,फोर बजे से लगीचिल्लाने डैड वॉक कराओ नहीं तो मेरे लिए कहीं से फाइव टैडी लेआओ ...सिक्स बजने पर नानी अम्मा सेवन चॉकलेट लाई,ऐट बजे तक शिक्षाजी ने बहुत इंटरेस्ट ले खाईंनौ दिन तक बूढ़े दादा ने हिंदी रोज सिखाई,हुई परीक्षा शिक्षा दस में द

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तुम...सम्पूर्ण कल्पना भी नहीं,और ना ही तुम सम्पूर्ण सत्य ही हो । मस्तिष्क पटल पर शब्दों से खिंची,आड़ी-तिरछी स्पंदित रेखाओं की अनबुझी सी कोई मूरत हो ।सोंधी मिट्टी के लोंदे से बनी कोई अनजान सी स्वप्निल सूरत हो । सत्य और स्वप्न के बीच झूलत

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मानव अब मानव नहीं रहा। मानव अब दानव बन रहा। हमेशा अपनी तृप्ति के लिए, बुरे कर्मों को जगह दे रहा। राक्षसी वृत्ति इनके अन्दर। हृदय में स्थान बनाकर । विचरण चारों दिशाओं में, दुष्ट प्रवृत्ति को अपनाकर। कहीं कर रहे हैं लुट-पाट।कहीं जीवों का काट-झाट। करतें रहते बुराई का पाठ, यही बुनते -रहते सांठ-गाँठ। य

main khoju tujhko yha- vha, sb se tera pta puchta, hr kshn tujhe khojta hu ,tu kha hai mere rachiyata. tu ek anokha hai ,tu "ansh" usi ka hai, vo nirvikar hai tere bhitr , tu swapna usi ka hai. main khoya hu khud se khud me, trsta hua apne mn se, jb-tb vyakul ho peeda se, tujhe khojta hu is van me.

बड़े गज़ब की चीज होती है पैसा पैसे का गुण कुछ होता है ऐसा |कभी घोटाला तो कभी हवाला भी करवाता है ये पैसा |कभी गले में माला तो कभी मुँह काला भी करवाता पैसा |झूठ को सच और सच को झूठ बनाने में भी देर नहीं लगाता पैसा |अपनों से ही अपनों का भी गला दबाने से बाज़ नहीं आता पैसा |दोस्तों को दुश्मन ,दुश्मनों को दोस

न कर सका जो कोई वैसा काम करले तू।      ऐ दोस्त इस दुनिया में थोड़ा नाम करले तू।     आदमी आते हैं और जाते हैं इस कदर।    इस नामुराद दुनिया की चिंता नहीं मगर।        है दीप जो वीरों का वो ताउम्र न बुझे।       कहना पड़े न नामुराद दुनिया को मुझे।       बनाले ऐसी हस्ती ऐसा दाम करले तू।       ऐ दोस्त इस दुन

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