कविताओं की नक्काशी से
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कर बैठा प्रेम दुबारा मैं, कविताओं की नक्काशी से
चिड़ियों की आहट में लिपटी, फूलों की मधुर उबासी से।
संयम से बात बनी किसकी,
किसकी नीयत स्वच्छंद हुई?
दुनियादारी में डूब मरा
चर्चा उसकी भी चंद हुई।
कौतुक दिखलाने आया है, बस एक मदारी काशी से
चिड़ियों की आहट में लिपटी, फूलों की मधुर उबासी से।
जो जीत चुका निर्मम जग को
है पड़ा कहीं गुमनामी में,
जो ताल ठोककर लौट गया
मरता वह भी बदनामी में।
कुछ, जीत गये हर बार मगर, हारे हैं बस संयासी से
चिड़ियों की आहट में लिपटी, फूलों की मधुर उबासी से।
...“निश्छल”