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दान-धर्म की महिमा क्या तुम, समझ गये हो दानवीर?
अगर नहीं तो आ जाओ अब, संसद के गलियारों में।
रणक्षेत्रों की बात पुरानी
भीष्म, द्रोण युग बीत गए हैं,
रावण, राम संग लक्ष्मण भी
पग-पग धरती जीत गये हैं,
कलि मानस की बात सुनी क्या, कौन्तेय हे वीर कर्ण?
अगर नहीं तो आ जाओ अब, संसद के गलियारों में।
रथी बड़े थे, तुम द्वापर के
महारथी थे और बहुत भी,
अर्जुन के संग नारायण भी
लोहा मान चुके थे तब भी,
रण से अब तुम दूर हुवे क्या, सूर्यपुत्र राधेय कहो?
अगर नहीं तो आ जाओ अब, संसद के गलियारों में।
लघु से लघु की बातें होतीं
गुणीजनों का मान कहाँ है?
नीयत कितनी भी भोली हो
जनता का सम्मान कहाँ है?
राजधर्म क्या सीख गये हो, अंगराज हे वासुसेन?
अगर नहीं तो आ जाओ अब, संसद के गलियारों में।
...“निश्छल”