मुझमें, मौन समाहित है
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जब खुशियों की बारिश होगी
नृत्य करेंगे सारे
लेकिन,
शब्द मिलेंगे तब गाऊँगा
मुझमें, मौन समाहित है।
अंतस् की आवाज़ एक है
एक गगन, धरती का आँगन।
एक ईश निर्दिष्ट सभी में
एक आत्मबल का अंशांकन।।
बोध जागरण होगा जिस दिन
बुद्ध बनेंगे सारे
लेकिन,
चक्षु खुलेंगे तब आऊँगा
मुझमें, तिमिर समाहित है।
वंद्य चरण के रज अभिवंदित
आत्मस्थ प्रियजन की वाणी।
शून्य-विवर में पली सभ्यता
सबकी अपनी अलग कहानी।।
दग्ध हृदय हो या उर सरिता
व्यक्त करेंगे सारे
लेकिन,
मूल मिलेगा तब ध्याऊँगा
मुझमें, निरति समाहित है।
सर्वदमन है ध्येय किसी का
कोई स्नेह-सिक्त अधिकारी।
सत्ता के बीमार कई हैं
निज प्रभुत्व में कुछ व्यभिचारी।।
निर्विवाद उल्लासक यह पल
ग्राह्य करेंगे सारे
लेकिन,
जनाभूति लेकर आऊँगा
मुझमें, विरति समाहित है
...“निश्छल”