मैंने देखें हैं बड़े बड़े जाल समझते हुए फूलों को जहां आकाश टूटते हैं बिजली में
लहरों के थपेड़े बैठाती है वह बच्चों को तीक्ष्ण अद्भुत ध्वनियों से भरी</
यह कविता कैसे हो सकती हैयह कविता कैसे हो सकती है उस खौफजदा पल का जब दस
हमारा सूरज उनकी आंखें बाघ सी चमक रही है और जीभ सांप सा लप
प्रेम के मायने आज
समझ नहीं आएंगे।
जब हमारे बाल सफेद हो