मैंने देखें हैं बड़े बड़े जाल
समझते हुए फूलों को
जहां आकाश टूटते हैं बिजली में
और डूबे हुए लोग
शव में बदल जाते हैं
मैंने देखें हैं रहस्यमय सूरज
जहां समुद्र की सी आंखें
अनेकों बार बुझ चुके हैं
और विस्तारित नभ में
एक तारा भी नहीं बचा है
मैंने बर्फ को धुआं बनते देखा है
देखा है शराब से भी गहरी
उत्तेजित प्यार की लड़ी
जहां ऊंचे घने पेड़ों से
सौम्य शांति की झाग
भयंकर दलदल बनते गए हैं
देखने की सारी प्रक्रिया
आखिर मुझे द्वीप में क्यों बदल देता है
मैं क्यों नहीं देख पाता
अवर्णनीय हवाओं को
चमकते नीले आकाश को
उमड़ती लहरों के वेग को
और एक समग्र मानव को
काश मैं देख पाता
ठंडी और मलहमी शाम
नाज़ुक व सुनहरी सुबह
जहां बसी हों फूलों की खुशबुएं
मानवता से भरी संवेदनाएं
और मुस्कुराती हुई आंखें
ताकि जून के धूप में भी
कोई नयनाभिराम झील
मेरी आंखों में उतर आए.