बुरे समय के लिए हमने बचाए रखे हैं कुछ चिंगारी राख के ढेर में कुछ किरण
इस बार न तुम्हें न हमें सुदूर क्षितिज तक जाना है ना ही पैबंद क
सृष्टि की कोख में कई प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं जैसे मोती बनने की प्रक्रिय
नदी की लय और गति अभी उतनी गंभीर नहीं हुई है कि हमारे आंकने की शक्ति वहीं जाक
एक रात जब आकाश बैगर तारों के सूना था और बिना चांद के सन्नाटा पसरा था<
मित्रों काल के इस विकट काल में बहुत सी चीजें मृत्यु से जितनी बाहर है
मैं पौधे का वह फूल हूं जिसे आजतक किसी ने भी सहजने की कोशिश नहीं की है
अभी समय के भंडार में ब्लैकहोल होने की बात सुगबुगाहट तक सीमित नहीं है और ना ह
आकाश का नीलापन जब तैरता है सागर के अंतस में तब विचरने की प्रक्रि
मैं जब घर से बाहर निकलता हूं अपनी आंखों को दराज में कानों को अलमारी में
रोशनी का बुरा दिन देखने योग्य बची कहां है कि खिझा हुआ अंधकार अपने लंबे नाखून
अभी अभी शाम की लालिमा जिस झुरमुट की ओट में इतराने को आतुर मचलती हुई से बैठी
मैं कहां जाऊं किसी स्वर्ग जैसा अब नर्क कहां बचा है यहां जहां कशिश से भरी आंख
वे मुझे पकड़ने के लिए आए जब मैंने देखा मैं अपने गांव में था देवदार के पेड़ क
हम यह भी नहीं बता सकते कितने कंकड़ पत्थर हर अफरा तफरी मे महाद्वीप में तब्दील
मेरी भीतरी सतह पथरीले चेहरे से पानी की एक बूंद सा चमकता रहा है हर पल
मैं दरअसल हर चीज के प्रति दिल की गहराईयों से उठती चीख की तरह हमेशा से किनारा करता ग
जिंदगी की राह पर शूल की चिंता अभी कहां छूटी है बूढ़े बरगद की उस छांव में
जहां कहीं भी होगा उठती अंतस से हूक अवसाद के चक्रवात में रेखांकित नहीं उसका व
तुम्हारे आने के बाद भी किताब डूबने के इंतजार में खड़ा रह सके कोई वियोग खोए र