यह कविता कैसे हो सकती हैयह कविता कैसे हो सकती है
उस खौफजदा पल का
जब दस मजबूत हाथ
दो कच्ची जांघों को
चिर डाल रहे थे
और छूटते खून की गंध
तुम्हारे ड्राईंगरूम में
नहीं पहुंच पा रही थी
हां अखबार के पन्ने
दूसरे दिन
उस गंदे रक्त से
जरूर सना दिखा
आखिरी पन्ने के
आखिरी कालम में
कि फलां लोकल ट्रेन में
आठ वर्षीय मासूम बच्ची को
उन पांच दरिंदों ने
तहस नहस कर दिया
हां यह पल
नहीं हो सकती
तुम्हारे लिए कोई कविता
और तुम्हारे अंतस में कुछ
काफी के भाप के संग
भाप बन रहा है
और उड़ी जा रही है
सारी की सारी कविताएं
व गर्मा गर्म खबर
नाश्ते के संग
तुम्हें गर्मी पहुंचा रहा होगा
यह पल
कविता के बिना भी
समर्थ है
कई परतों को खोलने में
और देने में सार्थक अर्थ
उन लकीरों को
जिसे तुम भले अनदेखा कर दो
एक दिन
वह जरूर चिल्लाएगी
तुम्हारी ही रसोई से
तब देखना है
तुम कैसे
इत्मीनान से खबरे पढ़ोगे
और कैसे ढाल पाओगे
इस कविता को
खबरों के शक्ल में.