कितनी दूर किनारा
नाविक, कितनी दूर अभी जाना
है
देर हो गई अगर राह में तो फिर पीछे
पछताना है ||
मावस की कारी अँधियारी रात का सन्नाटा
फैला है
और इधर दीपक की लौ ने भी कुछ कालापन
लूटा है |
पर कैसे दीखेगा वह तट जिसके निकट अभी
जाना है ||
देखो
नभ में मेघों की भी गहरी श्यामवर्ण काया है
और
इधर इस जीर्ण शीर्ण नौका में भी जल भर आया है |
कैसे
पहुँचेगी उस तट तक, क्या यह भी तुमने जाना है ||
आती
जाती लहरें मन में स्मृतियों के दीप जलातीं
किन्तु
उसी पल तेज़ आँधियाँ घहर घहर वह दीप बुझातीं |
दीप
बिना मग कैसे दीखे, आधी दूर अभी जाना है ||
नैया
खेते खेते नाविक कहीं राह में सो मत जाना
सपनों
के उस प्रबल भँवर में फँसकर राह भूल मत जाना |
डोल
गई जो नैया मग में, जीवन सत्य डूब जाना है ||
मेरे उपन्यास सौभाग्यवती भव से...............