आनन्द, अपरिचित, किन्तु परिचित बनी ऊर्जा |
एक स्वप्न, जिसमें है निवास मेरा |
एक स्थिति, जिससे है जुड़ाव मेरा |
एक ऐसी पूर्णता, जहाँ शेष है अभी कुछ और घटना |
निरन्तर लालसा सुखी रहने की |
क्या कभी अन्त होगा इस सबका ?
क्या निरन्तर सुखी रह पाएँगे हम
सुख की इस निरन्तर प्रगतिशील लालसा के साथ ?
नहीं, क्योंकि इसे पकड़ने के हर प्रयास के साथ
फिसलता जाएगा यह हाथों से हमारे |
जितनी लगाएँगे दौड़ इसकी ओर
उतना ही होता जाएगा यह दूर हमारी पहुँच से |
और रह जाएँगे हम मध्य मार्ग में ही |
पाना है इस ऊर्जा को यदि
तो समाप्त करने होंगे सारे प्रयास |
क्योंकि यह कहीं और नहीं, निहित है हममें ही |
प्रयास की दौड़ में हो जाते हैं हम दूर इससे |
वास्तव में आनन्द है ऐसा मोड़
जहाँ मनुष्य कर देता है बन्द द्वार सुखों के
क्योंकि उठ जाता है वह उनसे भी ऊपर ||