ज़िन्दगी को तपा लिया मैंने, उसका कुन्दन बना लिया मैंने |
आँधियाँ जिसको रोशनी देंगी उस शमा को जला लिया मैंने ||
घटाओं उट्ठो बिजलियाँ लेकर, लो नशेमन बना लिया मैंने |
ग़म तो मरहम है दिल के ज़ख्मों पर, दर्द को दिल बना लिया मैंने......
हसीं ये महफ़िल जाम भरा है, मस्त वो नगमा आज भी है |
दिल का नशेमन ना जाने क्यों तिनका तिनका आज भी है ||
कौन नहीं है, किसकी कमी है, दिल क्यों हैराँ आज भी है |
जाने क्या हम खो बैठे जो चाक गिरेबाँ आज भी है ||
घुँघरू तेरे झनकारें तो दिल में होती हलचल सी |
पर इनमें ना जाने किसका ग़म ये नुमायाँ आज भी है ||
दिल में बसी हैं कितनी यादें, कितनी मुरादें जी में हैं |
पगला ये दिल ना जाने क्यों तनहा तनहा आज भी है ||
हम आए हैं लेकर अपनी तनहाई इन हाथों में |
सनम दिखा दे तेरी महफ़िल जवाँ जवाँ क्या आज भी है ??
साक़ी आज पिला दे इतनी, बेहोशी में खो जाएँ |
वरना तेरी महफ़िल में दिल वीराँ वीराँ आज भी है ||
मेरे उपन्यास “नूपुरपाश” से......
https://purnimakatyayan.wordpress.com/2016/06/15