आपस में हम रूठ गए जो, हाथ हमारे छूट गए जो ।
ऐसे में अब तुम ही बोलो, कौन मनाएगा फिर किसको ।|
अहम् तुम्हारा बहुत बड़ा है, मुझमें
भी कुछ मान भरा है ।
नहीं बढ़ेंगे आगे जो हम, कौन भगाएगा इस "मैं" को ।।
जीवन पथ है संकरीला सा, ऊबड़
खाबड़ और सूना सा ।
चले अकेले, कोई आकर राह दिखाएगा फिर किसको ||
यों ही रूठे रहे अगर हम, ये
दरार कल खाई बनेगी ।
उस खाई को भरवाने मन, पास बुलाएगा फिर किसको ।।
दोनों एक दूजे से नाखुश, बात
ज़रा सी बड़ी लगे तब ।
ऐसे में तब माफ़ी देकर कौन मनाएगा फिर किसको ।।
जीवन है सुख दुःख की छाया, जिसमें
पागल मन भरमाया ।
दुःख में बोलो आकर कोई धैर्य बंधाएगा फिर किसको ।|
ना जाने जीवन कितना है, आए कहाँ से, कित जाना है |
साथ रहे तो हँसते गाते पा ही जाएँगे मंज़िल को ||