उमड़ घुमड़ कर बादल
छाएँ, पिऊ पिऊ पपिहा गाए |
दमक दमक दम बिजली दमके, सनन सनन पुरवा डोले ||
ये बादल के टुकड़े लगते गोरी के मुखड़े
जैसे
घूँघट में जो कभी जा छिपे, और कभी घूँघट खोले |
पिघला जाता है नभ ऐसे जैसे मीत कोई
बिछड़े ||
चुपके चुपके हवा वो देखो आँखमिचौली है
करती
और कभी सोने सी किरणें इनको पास बुला
लेतीं |
तेज़ हवाओं से देखो ये कभी लगें सिकुड़े
सिकुड़े ||
कभी ये खोते, कभी ये रोते, कभी ये धरती से मिलते
कभी उछलते, कभी मचलते, और कभी हैं लहराते |
कितनी कोई कर ले कोशिश, कभी न जाएँ ये जकड़े ||
https://purnimakatyayan.wordpress.com/2016/07/31