शत शत नमन स्वामी जी
आज मेरे अध्यात्म गुरु, महान आत्मा, मेरे विचार से सदी के महान दार्शनिक और हिमालय योग परम्परा के स्वामी राम के पट्टशिष्य स्वामी वेदभारती जी की प्रथम पुण्य तिथि है | गत वर्ष आज ही के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उनकी आत्मा इस शरीर को तज परब्रह्म में लीन हो गई थी | स्वामी जी को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं | वो बस एक ही बात कहते थे “मेरी कोई व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा नहीं है | मैं तो केवल उस उत्तरदायित्व का निर्वाह कर रहा हूँ जो अत्यन्त प्राचीन हिमालयन योग परम्परा की अध्यात्मिक धरोहर के रूप में मुझे सौंपा गया है: कि संसार में लोगों को बहुत कष्ट हैं – उन कष्टों को कम करने के लिए और लोगों के मन शान्त करने के लिए जो भी प्रयास तुम कर सकते हो करो...”
17 से अधिक भाषाओं में धाराप्रवाह अपनी बात कहने वाले, मधुर मुस्कान, मधुर वाणी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी स्वामी वेदभारती जी ने भारतीय योग और वैदिक ज्ञान का प्रचार प्रसार करते हुए अनगिनत देशों की यात्राएँ कीं और स्पेन, इटली, फ्रांस इत्यादि जिस देश में भी उनका जाना हुआ वहाँ उन्हीं की भाषा में तथा उनकी धार्मिक और आध्यात्मिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए उन विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया | बहुत सी भाषाएँ तो उन्होंने केवल एक ही रात में योगनिद्रा की स्थिति में सीख लीं | ध्यान के हज़ारों विद्यार्थियों को एक साथ केवल पाँच मिनट के अन्दर ध्यान की स्थिति में ले जाना उनके लिए कोई कठिन कार्य नहीं था |
अपने गुरु स्वामी राम के द्वारा 1969 में दीक्षित किये जाने के साथ ही उसी वर्ष स्वामी वेदभारती जी ने Minneapolis, USA में प्रथम ध्यान केन्द्र की स्थापना की | संन्यास लेने से पूर्व स्वामी वेदभारती जी का नाम था “पण्डित उषार्बुद्ध आर्य” |
1981 में ऋषिकेश में उन्हें स्वामी राम आश्रम के साधना मन्दिर का प्रमुख नियुक्त किया गया और तभी से हज़ारों ध्यानार्थियों को गहन ध्यान की अवस्था में ले जाने में उनकी सहायता करते रहे |
योग और ध्यान विषयों पर न जाने कितनी पुस्तकें, बुकलेट्स और ऑडियो रिकॉर्डिंग्स उनकी उपलब्ध हैं | उनके लिखे लेख न जाने कितनी पत्र पत्रिकाओं की शोभा बढ़ाते रहे हैं |
स्वामी जी के विषय में जितना लिखा जाए कम है, कम से कम मेरे जैसी साधारण बुद्धि वाली महिला के पास तो शब्दों का अत्यन्त अभाव है | लेकिन उनका जो स्नेह और आशीर्वाद मुझे प्राप्त हुआ वह जीवन भर मेरा सम्बल बना रहेगा और मार्गदर्शन करता रहेगा | मैं स्वामी जी के विषय में “कुछ लिखने” की चेष्टा नहीं कर रही हूँ, वे न केवल मेरे गुरु थे, बल्कि मुझ पर पिता और मित्र के समान स्नेह था उनका | शायद अपने सभी शिष्यों पर और जो भी कोई उनके सम्पर्क में आता होगा उन सभी पर उनका इसी प्रकार स्नेह रहता होगा | पर मैं तो केवल अपनी बात ही जानती हूँ | दो घटनाओं का उल्लेख अवश्य करूँगी, जिनमें से प्रथम घटना की चर्चा मेरे पति ने भी अपने एक लेख में की है (हम तीनों ने ही स्वामी जी से दीक्षा ली है):
मेरी माता जी का स्वर्गवास हुआ था और मैं स्वयं को भीतर तक बहुत अधिक टूटी हुई अनुभव कर रही थी | पहले 1990 में पिताजी स्वर्ग सिधार गए, और उनके ठीक 19 वर्ष बाद 2009 में माँ | हालाँकि मेरे पति डॉ. दिनेश शर्मा और बिटिया स्वस्ति श्री अपने सारे काम छोड़कर मेरा मन बहलाने में ही रात दिन लगे हुए थे, फिर भी न जाने क्यों ऐसा अनुभव हो रहा था कि अब मैं संसार में बिल्कुल अकेली रह गई |
माँ की सारी क्रियाएँ पूर्ण करने के बाद हम सब कुछ दिनों के लिए अपने पति के पैतृक नगर ऋषिकेश चले गए | घर पहुँचने के साथ ही सबसे पहले स्वामी जी से मिलने की इच्छा हुई और हम तीनों आश्रम पहुँच गए | स्वामी जी सब जानते थे, मेरी मन:स्थिति से भी भली भाँति परिचित थे, सो मुझे सान्त्वना देने लगे कि न मेरे पिताजी कहीं मुझसे दूर गए हैं और न मेरी माँ | दोनों हर समय मेरे साथ हैं और चाहते हैं कि मैं सदा खुश और सुखी रहूँ | और बहुत सी अध्यात्म की बातें मेरा मन शान्त करने के लिए करते रहे |
स्वामी जी के कक्ष में बस हम तीनों थे और स्वामी जी थे, और कोई नहीं था | अभी वो मुझसे बात कर ही रहे थे कि अचानक मुझे लगा कि न केवल कक्ष में बल्कि मेरे चारों ओर चन्दन और गुलाब की मिली जुली सुगन्ध फैली हुई है और मैं उस सुगन्ध में नहाई जा रही हूँ | हममें से किसी ने भी किसी तरह का कोई परफ्यूम भी नहीं लगाया हुआ था | मैंने कहा “स्वामी जी आपने बहुत अच्छा रूम स्प्रे किया है...”
स्वामी जी ने मधुर स्नेहशील मुस्कराहट के साथ पूछा “कैसी सुगन्ध ?”
“कुछ चन्दन और गुलाब की मिली जुली खुशबू है स्वामी जी, और ऐसा लग रहा है कि जैसे मैं उसमें स्नान कर रही हूँ...” मैंने उत्तर दिया |
पूर्ववत् मुस्कुराते हुए स्वामी जी बोले “आपकी सभी शंकाओं का समाधान हो गया... अब आप बिना किसी अवसाद के शान्ति के साथ जीवन जियें...”
कुछ पल सोचा, और समझ आ गया कि वास्तव में मेरे माँ पापा मुझसे दूर कहीं नहीं गए हैं, वे तो सदा सदा मेरे साथ हैं – अपने स्नेह और आशीर्वादों की वर्षा मुझ पर करते हुए...
एक और बात, मेरी माँ को वास्तव में चन्दन के इत्र का बेहद शौक़ था और पिताजी को गुलाब के इत्र का... किसी समय में उनकी इत्र की छोटी छोटी शीशियाँ एक सन्दूकची में रखी रहती थीं, ताकि बच्चे चुपके से निकाल न लें...
एक अन्य घटना...
मेरा नियम है प्रातःकाल बहुत जल्दी बिस्तर छोड़ देना और लगभग दो घंटा योग आदि का अभ्यास करके स्नानादि से निवृत्त हो जप और ध्यान के लिए बैठ जाना | सुबह साढ़े सात बजे तक का समय मेरे अपने लिए होता है और कोई मेरी इस दिनचर्या में विघ्न नहीं डालता | पतिदेव दिल्ली से बाहर भी होते हैं तब भी साढ़े सात बजे के बाद ही फोन करते हैं |
पिछले वर्ष 13 जुलाई की बात है | मेरे पति ऋषिकेश गए हुए थे | उस दिन सुबह तीन बजे ही आँख खुल गई और प्रयास करने के बाद भी फिर से नींद नहीं आ सकी | सोचा, अब बिस्तर छोड़ ही देना चाहिए – और बिस्तर से उठकर अपने कार्यक्रम में लग गई | स्वामी जी ने मन्त्र दीक्षा दी थी और नियमित रूप से उस मन्त्र का भी जाप करती हूँ | स्वामी जी ने जब दीक्षा दी थी तो वे ध्यान की अवस्था में मेरे दाहिनी ओर बैठे थे और मेरे कान में फुसफुसाते हुए मन्त्र बोल रहे थे | उस दिन जब उस मन्त्र का जाप कर रही थी तो बड़ी गहन अनुभूति हुई जैसे स्वामी जी उसी तरह मेरे दाहिनी ओर बैठ मेरे कान में धीमे धीमे मन्त्र बोल रहे हैं | पूरे जाप में स्वामी जी मेरे साथ थे – प्रातः सवा छः बजे तक मेरे दाहिने हाथ के साथ उनका स्नेहपूर्ण स्पर्श और मेरे कान में उनकी मन्त्र की फुसफुसाहट...
एक घंटा पहले उठी थी तो एक घंटा पहले ही सारे काम पूरे भी हो गए | अचानक साढ़े छः बजे इनका फोन आ गया “आपको डिस्टर्ब किया न मैंने इतनी जल्दी फोन करके ?”
“नहीं ऐसा कुछ नहीं, क्या बात है...? माँ जी तो ठीक हैं...?” हैरान होते मैंने पूछा, क्योंकि नियमित समय से एक घंटा पहले इनका फोन आया था, सोच रही थी सब ठीक तो है...
“स्वामी जी चले गए...” छूटते ही इन्होने कहा |
“कहाँ अमेरिका...?” मैंने पूछा, क्योंकि उनका प्रायः वहाँ जाना रहता था “पर मौन में कैसे करेंगे...?” स्वामी जी का मौन व्रत चल रहा था |
बाबा का फोन आया जान अब तक बिटिया भी मेरे कमरे में आ चुकी थी | उधर से इनकी आवाज़ आई “नहीं, उन्होंने शरीर छोड़ दिया...” और सुनते ही मेरी चीख निकल पड़ी “क्या किया जा सकता है, इसके आगे तो किसी का वश नहीं न... सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उनका शरीर पूर्ण हुआ... अच्छा मैं तो आश्रम के रास्ते में हूँ, बाद में बात करूँगा...”
मैं तो रोने लगी | तब बिटिया ने समझाया कि स्वामी जी कहीं नहीं गए हैं, सदा हम सबके साथ हैं | उन जैसी महान आत्मा के शरीर छोड़ने पर इस तरह रोना नहीं चाहिए, उन्हें कष्ट होता है |
शान्त होकर मैं सोचने लगी – सुबह तीन सवा तीन बजे के लगभग स्वामी जी ने शरीर त्यागा, उसी समय मैं भी नींद से जाग गई और फिर सवा छः बजे तक मेरे साथ मन्त्र जाप किया... क्या था ये सब...? क्या स्वामी जी मुझे बताना चाह रहे थे कि शरीर रूप में न सही, पर अनुभूति के रूप में वे सदा मेरे साथ रहेंगे...?
सच में ऐसी महान आत्माएँ शरीर त्यागने के बाद भी लोगों को अध्यात्म का मार्ग दिखाती ही रहती हैं... शत शत नमन स्वामी जी...
ॐ शान्ति: ॐ
https://purnimakatyayan.wordpress.com/2016/07/13