जीवन रूपी नदिया की
लहरों में तेज़ बहाव है
मानव मन की नौका को तुम ज़रा संभाले रखना
||
इस नदिया का पाट बहुत ही चौड़ा है,
और गहराई भी कुछ समझ नहीं आती |
छोटी सी नौका और दूर किनारा है, खड़ी खड़ी वह यही सोचकर घबराती ||
अनजाने में खोल न देना, वरना वह बह जाएगी
मानव
मन की नौका को तुम ज़रा संभाले रखना ||
कभी
तेज़ तूफ़ानी लहरें उठती हैं, और कभी हो शान्त ठहर भी जाती हैं |
पर
नौका क्या जाने कब तूफ़ान उठेगा, और थमेगा कब कैसे यह भी ना जाने ||
मत
खोलो बिन सोचे समझे, वरना फिर पछताओगे
मानव
मन की नौका को तुम ज़रा संभाले रखना ||
नदी
मध्य मँझधार गहन तुम पाओगे, जिनका पहले से न पता कर पाओगे |
एक
बार यदि फँस बैठे तुम किसी भँवर में, तो फिर उसमें राह नहीं तुम पाओगे ||
मानव
मन की नौका को तुम ज़रा संभाले रखना ||
मेरे उपन्यास “सौभाग्यवती भव”
से...........