कुछ अंदर है,
कुछ बाहर है,
कुछ मेरे भी,
कुछ तेरे भी,
कुछ यहाँ वहां,
है बिखरा हुआ,
कुछ कांच सा,
टुटा हुआ कहीं,
कुछ ताश सा,
बिखरा हुआ कहीं,
कुछ मातम सा,
है छाया हुआ,
कहीं हर्ष बिगुल,
सा बजा कोई,
कुछ नग्मे हैं,
कुछ यादें हैं,
कुछ तेरे हैं,
कुछ मेरे हैं,
कुछ अब भी,
साबुत बचा कहीं,
कुछ टुकड़ों में,
है बंटा कहीं,
कुछ हिस्से हैं,
कुछ किस्से हैं,
कुछ बातें हैं,
बस कहने की,
कुछ बातें,
करने की भी हैं,
न कह ही रहे,
न कर ही रहे,
न हम, न तुम।
-अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)