आलू ,मटर ,टमाटर
में थी दोस्ती सच्ची और प्यारी
साथ निभाते थे उनका
धनिया और हरी मिर्च न्यारी
धूमधाम से खेला करते
गोभी - गाजर और फली भी
प्याज भी साथ में आती थी
दोस्त तो थी वो भी न्यारी
कभी सबको वो रुला देती थी
उसको लगता था वो है बेचारी
कद्दू,लोकी,तुरई प्यारी
धनिये से थी उनकी यारी
आपस में सब खुस रहते थे
यादों में अपनी बहुत सारी
भिंडी और करेला
उनको बिलकुल भी न भाते थे
इसीलिए दोनों बेचारे
अकेले अकेले ही आते जाते थे
शलगम, मूली और चुकंदर
इनका अपना अलग नजरिया
सबको पसंद आते थे और
सबको पसंद करते थे
हाय रे लगे न नजरिया
मेथी, पालक, सरसों
बथुआ और चने के पत्ते
मिल जाते थे आसानी से
लगते थे सबको ये अच्छे
अब इनका मिलना दूभर है
तरस रहे हैं सब इनको
इनका दोष नहीं हो सकता
दोष दू खुद को या किसको?
जैसे हमसे, तुमसे छीना
गाय, भैस, बकरी से छीना
कोयल और कबूतर से भी
चिड़िया, बाज और तीतर से भी
वैसे ही इनसे भी छीना
खेलने का मैदान,
रहने की जगह,
जीने की वजह,
पनपने का साहस,
अपनों का प्यार,
माँ बाप का दुलार,
कभी वहीँ पर हुआ करते थे
जहाँ आज हैं हाईवे शाइवे,
ऊँची ईमारत, बड़े बाजार
नए कारखाने, गाड़ियों के शोरूम
अभी बस थोड़ा बाकी है
पक्षी विलुप्त, पेड़ विलुप्त
पुष्प विलुप्त, औषधि विलुप्त
सब्जियां विलुप्त, गांव विलुप्त
बचपन विलुप्त, सत्संगति विलुप्त
जो बाकी है हो जाना है
वो बच्चो हम सब विलुप्त
रह जाएँगी बस यहाँ पर
हाईवे शाइवे,
ऊँची ईमारत,
बड़े बाजार
नए कारखाने,
गाड़ियों के शोरूम
और एक बहुत बड़ी चीज़
"प्रगति" जो "धूम धाम" से हो रही है
-अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)