लघु कथा......."हीत मीत नात घर जोहा, तब खेतन में मुजहँन शोहा" मटका का कुर्ता और परमसुख की धोती झहरा के झिनकू भैया, पान दबाये, मुस्की मारते हुए खूब झलक रहे थे। बहुत दिनों बाद नबाबी लिवास में झिनकू भैया को देखकर, आंखें रंगीन चौराहे की भरचक सड़क पर गोता खा गयी। अरे भैया क्या
रावण का पुत्र वीर योद्धा मेघनाथ यह जान गया था की श्रीराम
"वाह रे अपनत्व" झिनकू भैया दौड़-दौड़ के किसी को पानी पिला रहे हैं तो किसी को चाय और नमकीन का प्लेट पकड़ा रहें है। किसी को सीधे-सीधे दोपहर के खाने पर ही हाल- हवाल बतला रहे हैं। सुबह से शाम जब भी किसी का झोला उठ जाता तो उसको बस पकड़ा रहें होते हैं। कभी सामान से भरी अटैंची उठाए