लघु कथा.......
"हीत मीत नात घर जोहा, तब खेतन में मुजहँन शोहा"
मटका का कुर्ता और परमसुख की धोती झहरा के झिनकू भैया, पान दबाये, मुस्की मारते हुए खूब झलक रहे थे। बहुत दिनों बाद नबाबी लिवास में झिनकू भैया को देखकर, आंखें रंगीन चौराहे की भरचक सड़क पर गोता खा गयी। अरे भैया क्या बात है, बन ठन कर समधियाने जा रहे हैं क्या? आज तो सबकी किरिच फेल हो गई है, इस चमक-धमक का राज तो भौजी ही बताएंगी, लगता है कोई बड़ी लॉटरी हाथ लगी है, ई पान की गिलौरी कहाँ से लाली लगवा रही है, पता तो चले।
झिनकू भैया.....”अरे भाई, छोड़ो ये सब बेकार की बातें हैं तुम्हारा आगमन कब हुआ है, मैं तो यही मान बैठा था कि अब तुम गांव से किनारा कर लोगे और जो एकाध बीघे जमीन जायजात है उसका निपटारा कर के शहर में ही धूनी रमाओगे। अगर कुछ ऐसा ही विचार हो तो, बेझिझक मुझसे बता देना, जो पराया देगा वह मैं ही व्यवस्था कर दूंगा। पटीदार हूँ, घर की जमीन घर मे रह जाए तो इससे उचित और क्या होगा। ऊ, देखों नछत्तरा ने कागज पर अंगूठा तो लगाया लेकिन बिरादरी को भनक भी न लगी। नमक हरामी कर गया, बेशर्म है आज भी आये दिन कुछ न कुछ मांगने के लिए, लोटा जैसा मुंह लटकाए चला आता है। एक दिन तुम्हारी भौजी ने कह ही दिया, जिसको जमीन जायजाद दिए हो उसी के पास जाओ, यहां अब क्या करने आते हो, उस दिन भाई- पटीदार याद नही आये, बगल में गैर को बसा दिए, निर्लज्ज कहीं के, तनिक भी याद अपनों की न आई, बाकलम खुर्द करते हुए, बेहया कहीं का”।
आशीर्वाद दीजिये भैया”……”भगवान न करें कि किसी दुश्मन के घर भी ऐसी नौबत आए और वह अपनी जन्मभूमि का सौदा करें। आप को तो पता ही है कईयों की जमीन मेरे पास इस लिए गिरवी है कि उनका काम निकल जाए और बैनामा से उन्हें निजात मिले। एक बार जमीन हाथ से गई तो फिर वापस नही आती। दो-पांच बीघा तो मैं भी खरीदना चाहता ही हूँ, जिसकी शुरुवात भी हो ही गई है आगे माता जी की कृपा और आप जैसे पाटीदारों का आशीर्वाद। भैया, आप भी तो अपनी बाग वाली जमीन निकलना चाहते थे अगर इच्छा हो तो एक दिन कचहरी का चूरा-दही खा ही लिया जाय, मौका ठीक-ठाक है, सोचकर बताइयेगा। चलिए, मलाई वाली चाय पीते हैं और एक एक पान दबाकर घर की सब्जी का छौंका लगाते है, हा हा हा हा हा”।
मैं झिनकू भैया के साथ चाय की दुकान पर..... “अरे भाई, बढ़िया चाय बनाओ, नमकीन और दो दो रसगुल्ला के साथ बोतल वाला ठंडा पानी ले आओ, अबे टेबल तो साफकर पहले और चाय स्टील की गिलास में लाना। भैया इस चमक का राज क्या है कुछ तो बताइए”।
झिनकू भैया...... “छोड़ो यार अभी तुम्हारी घड़ी वही अटकी है, खाना-पीना कर के कचहरी करने आना तो अपनी भौजी से सुन लेना, मजेदार वाक्या है......तंगी में तंग तो हुआ पर अब अच्छे कर्मों का फल मिल रहा है”।
मैं अपने घर से टहलते हुए निकला और भौजी के दर्शन हो गए, उनका गुलाबी अचरा भी ओठलाली लगाकर मुस्कुरा उठा। प्रणाम भौजी, कैसी हैं आप और आप की जुगलबंदी, भैया तो खूबे जवान हो गए हैं। इस जवानी का राज और दरवाजे पर की रौनक, नई टी.वी. नया पंखा समझ से परे हो रहा है।
भौजी..... “बाल सफेद हो गए पर आप का मजाकिया सुभाव नही गया, कमर लटकने लगी और जवानी छाई है, पूछिये उनसे अब तो तर-त्योहार की तरह ही नेवान होता है, रोज-रोज की हरमुनिया हेरा गई। चाय बनाकर लाती हूँ फिर आराम से बैठकर बतियाते है।
झिनकू भैया..... “भोजन के बाद दश कदम चलने की आदत है आवाज सुना तो वापस आ गया”। इतने में गरमा-गरम चाय और भौजी की पायल छनक गई।
भौजी.... “का बातएँ बाबू, परियार यही समय है, घर में एक दाना अनाज नही था धान की बुआई करनी थी, बिया के लिए सबसे गुहार लगाई, नात-बात, हीत-मीत सबको टटोल लिया, किसी के वहाँ एक दाना न मिला। इनको तो जानते ही हो जिद्दी नंबर एक है। एक दिन कुदाल उठाये और भगोड़े पर से मुजहँन की जड़ खोदकर उठा लाये, दूसरे दिन हल्की बारिश शुरू हो गई भीगते हुए बिना जोते हुए सारे खेतों में लगा आये, गांव में थूक-छिया हो गई। हर लोग इन्हें पागल की उपाधि से नवाजने लगे। पोरसा भर सरपत से खेत भर गया और गर्मी में कटाई शुरू होते ही खरीदार आने लगे। एक अटिया का पचास रुपया भाव लगा और ग़रीबी के साथ पागलपन की उपाधि भी जाती रही। थोक में जो बिकता उसके मालिक यही होते हैं पर फुटकर सौ-दो सौ का रोज मैं भी बेच देती हूँ। अभी भी करीब दो सौ अटिया पड़ी है सत्तर के भाव पर बिकेगी, बरसात हुई नही की माल डेढ़ा हो जाएगा। यही राज है और यही राजधानी, यहीं गुजर है और यही गरजबयानी। इस बार कुछ न कुछ धान लगाएंगे, अब खाद पानी का जुगाड़ हो गया है, ऐसे ही गिनते-गिनाते नैया पार हो जाएगी, बच्चे भी अपने-अपने रोजी-रोटी में लग गए हैं, शादी-ब्याह हो ही गया, अब......”
“दोहा”
नाती- नतकुर हरि भजन, घर घर कर रखवार।
जैसी जिसकी चाकरी, वैसा वर उजियार।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी