एक बार विष्णु भगवान लक्ष्मी जी से बोले लोगों में भक्ति कितनी बढ़ गई है सब नारायण नारायण कहते हैं तो लक्ष्मी जी बोली आपको पाने के लिए नहीं मुझे पाने के लिए भक्ति बढ़ गई है तो भगवान बोले लोग लक्ष्मी लक्ष्मी ऐसा जाप थोड़े ही करते हैं तो माता लक्ष्मी बोली विश्वास ना हो तो परीक्षा हो जाए भगवान नारायण एक गांव में ब्राह्मण का रूप लेकर गए एक घर का दरवाजा खटखटाया यजमान ने दरवाजा खोल कर पूछा कहां से आए हैं तो भगवान बोले हम तुम्हारे नगर में भगवान का कथा कीर्तन करना चाहते हैं यजमान बोला ठीक है महाराज जब तक कथा कीर्तन होगी तब तक आप मेरे घर में ही रहना गांव के कुछ लोग इकट्ठा हो गए और सब तैयारियां कर दी पहले दिन कुछ लोग आए अब भगवान जब स्वयं कथा कर रहे हैं तो संगत भी बढ़ गई दूसरे और तीसरे दिन और भी भीड़ हो गई भगवान खुश हो गए की कितनी भक्ति है लोगों में लक्ष्मी माता ने सोचा की देखा जाए क्या चल रहा है लक्ष्मी माता ने बुड्ढी माता का रूप लिया और उस नगर में पहुंची एक महिला ताला बंद करके कथा में जा रही थी माता उसके द्वार पर पहुंची और बोली बेटी जरा पानी पिला दे वह महिला बोली माताजी 3:00 बज चुके हैं मुझे प्रवचन में जाना है लक्ष्मी माता बोली पिला दे पानी बेटी बहुत प्यास लगी है तो वह महिला लोटा भर के पानी लाई माता ने पानी पिया और लौटा वापस लौट आया तो सोने का हो गया था यह देखकर महिला अचंभित हो गई कि लौटा दिया स्टील का और वापस लिया तो सोने का कैसी चमत्कारी माताजी हैं महिला हाथ जोड़कर कहने लगी कि माता जी आपको भूख भी लगी होगी खाना खा लीजिए महिला ने सोचा कि खाना खाएंगे तो थाली कटोरी चम्मच गिलास आदि भी सोने की हो जाएंगे माता लक्ष्मी बोली तुम जाओ बेटी तुम्हारा प्रवचन का टाइम हो गया है वह महिला प्रवचन में आई तो सही लेकिन आसपास के महिलाओं को सारी बात बताइए अब महिलाएं यह बात सुनकर चालू सत्संग में से उठ कर चली गई अगले दिन से कथा में लोगों की संख्या कम हो गई तो भगवान ने पूछा लोगों की संख्या कैसे कम हो गई किसी ने कहा एक चमत्कारी माता जी आई हूं नगर में जिसके घर दूध पीती हैं तो गिलास सोने का हो जाता है थाली में रोटी सब्जी खाती है तो थाली सोने की हो जाती है इस कारण से लोग प्रवचन में नहीं आते भगवान नारायण समझ गए कि लक्ष्मी का आगमन हो चुका है इतनी बात सुनते ही जो यजमान सेठ जी थे वह भी उठ खड़े हो गए खिसक गए पहुंचे माता लक्ष्मी के पास बोले माता मैं तो भगवान की कथा का आयोजन कर रहा था और आपने मेरे घर को ही छोड़ दिया माता लक्ष्मी बोली तुम्हारे घर तो मैं सब से पहले आने वाली थी लेकिन तुमने अपने घर में जिस कथाकार को ठहराया है वह चला जाएगा तभी मैं आऊंगी सेठ जी बोले बस इतनी सी बात अभी उनको धर्मशाला में कमरा दिलवा देता हूं जैसे ही महाराज बने भगवान कथा कहकर घर आए तो सेठ जी बोले अपना बिस्तर बांध लो आप की व्यवस्था धर्मशाला में कर दी गई है महाराज बोले अभी तो दो 3 दिन बचे हुए हैं यही रहने दो सेठ बोले नहीं नहीं तुम जल्दी जाओ मैं कुछ भी सुनने वाला नहीं किसी और मेहमान को ठहराना है इतने में लक्ष्मी जी आएंगे और कहा कि सेठ जी आप थोड़े समय के लिए बाहर जाओ मैं इन से निपट लूं माता लक्ष्मी जी भगवान से बोली प्रभु अब तो मान गए भगवान नारायण बोले हां लक्ष्मी तुम्हारा प्रभाव तो है लेकिन एक बात तुमको मेरी भी माननी पड़ेगी तुम तब आई जब मैं संत के रूप मे यहां आया संत जहां कथा करेंगे वहां लक्ष्मी का निवास अवश्य होगा यह काकर भगवान नारायण ने वहां से बैकुंठ के लिए विदाई ली प्रभु के जाने के बाद अगले दिन सेठ के घर सभी गांव वालों की भीड़ जमा हो गई सभी चाहते थे कि यह माता सबके घरों में बारी-बारी से आए परिया क्या लक्ष्मी माता ने सेठ और बाकी सब गांव वालों को कहा कि अब मैं जा रही हूं सभी कहने लगे कि माता ऐसा क्यों क्या हमसे कोई भूल हो गई है माता ने कहा मैं वही रहती हूं जहां नारायण का वास होता है आपने नारायण को तो निकाल दिया फिर मैं कैसे रह सकती हूं और वे चली गई शिक्षा जो लोग केवल माता लक्ष्मी को पूजते हैं वे भगवान नारायण से दूर हो जाते हैं अगर हम नारायण की पूजा करें तो लक्ष्मी तो वैसे ही पीछे-पीछे आ जाएंगी क्योंकि उनके बिना वह रही नहीं सकती जहां परमात्मा की याद है वहां लक्ष्मी का वास है केवल लक्ष्मी की पीछे भागने वालों को न माया मिलती है नाही राम नारायण नारायण