पुराने समय की बात है हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा राज्य करते थे लेकिन उनको कोई पुत्र नहीं था कुछ दिन बीत जाने के पश्चात हिरण्यकश्यप को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई वह पुत्र बहुत तेजवान और सुंदर था धीरे-धीरे पुत्र बड़ा होने लगा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र का नाम प्रहलाद रखा प्रहलाद सुबह और शाम पूजा अर्चना किया करते थे वह जैसे जैसे बड़े होने लगे वह विष्णु भगवान के सच्चे भक्त बन गए लेकिन हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से बहुत जलन रखता था वह प्रहलाद को विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करने से रोकता था लेकिन प्रहलाद अपने पिता की बातें अनसुनी कर भक्ति में लीन रहते थे हिरण्यकश्यप यह देख कर आग बबूला हो गया और गुस्से से पागल सा हो गया हिरण्यकश्यप को एक युक्ति सूझी उनकी एक बहन होलिका थी हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को जलाने की बात की होलिका तैयार हो गई होलिका को वरदान स्वरूप एक चादर मिला था वह यदि वह चादर ओढ़ कर अग्नि में बैठ जाए तो अग्निदेव भी उसे नहीं जला सकते थे होलिका ने इसी बात का फायदा उठाया और अपने भतीजे प्रहलाद को गोंद में लेकर जलती अग्नि में बैठ गई प्रहलाद भी समय की नजाकत को समझते हुए आंख मूंदकर विष्णु भगवान का जाप करने लगे अचानक से बहुत तेज हवा उठी और होलिका का चादर उड़ा ले गई देखते ही देखते होलिका जलकर राख हो गई और प्रहलाद विष्णु भगवान का जाप करते हुए अग्नि से बाहर आ गए अब हिरण्यकश्यप को बहुत गुस्सा आया हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को एक खंभे से बांध दिया और जोर-जोर से चिल्लाने लगे कहां है तुम्हारा भगवान विष्णु बुलाओ उसको नहीं तो मैं तुम्हें मार डालूंगा प्रहलाद विष्णु भगवान का जाप करने लगे जैसे ही हिरण्यकश्यप प्रहलाद को मारने पहुंचा खंभा टूट पड़ा और उसने से नरसिंह देवता जन्म लिए और उन्होंने हिरण्यकश्यप को मारकर प्रहलाद को जीवनदान दिया