नारद मुनि को अपने ज्ञान पर बहुत अभिमान और घमंड हो गया वह सोचने लगे मेरे जितना ज्ञानी और धार्मिक तीनो लोक में कोई भी नहीं है नारद मुनि का अभिमान चूर करने के लिए विष्णु भगवान ने एक चक्रव्यूह रचा जिसमें देवी महालक्ष्मी एक राजकुमारी के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई जब राजकुमारी बड़ी हो गई तब उनके पिताजी को उनके विवाह की चिंता होने लगी उन्होंने नारद मुनि को याद किया नारद मुनि महल में उपस्थित हुए राजा ने अपनी सारी समस्याएं उनको बताइए इतने में राजकुमारी भी आ गई नारद मुनि राजकुमारी को देखकर अपने होश गवा बैठे और राजा से बोले आप राजकुमारी का स्वयंबर रख दीजिए उनके योग्य वर की तलाश वह खुद कर लेंगी राजा ने नारद मुनि की बात स्वीकार कर ली और राजकुमारी के स्वयंवर का दिन तय हो गया इधर नारद मुनि विष्णु भगवान के पास पहुंचे बोले प्रभु आप मुझे हरि रूप प्रदान कीजिए मुझे आपके रूप की इस समय जरूरत है विष्णु भगवान बोले ठीक है हरि रूप पाकर नारद मुनि फूले न समाए अब वह इतराने लगे कि स्वयंवर में राजकुमारी उन्हें ही पसंद करेंगी स्वयंबर का दिन भी आ गया नारद मुनि उस दिन सबसे पहले पहुंचकर आगे वाली कुर्सी पर बैठ गए और सोचने लगे अब राजकुमारी मुझे ही पसंद करेंगी राजकुमारी जयमाला लेकर निकली नारद मुनि के पास से होते हुए एक साधारण से दिखने वाले युवक के गले में जयमाला डाल दिया यह देखकर नारद मुनि बहुत दुखी हुए और निराश होकर महल से बाहर आए और विचार करते हुए आगे बढ़ने लगे रास्ते में उन्हें एक मानसरोवर दिखा नारद मुनि सोचे थोड़ा रुक कर विश्राम कर लेते हैं तब चलेंगे यहां से नारद मुनि जैसे ही नदी में मुंह धोने के लिए गए उन्होंने अपना मुख देखा तो उन्हें बहुत क्रोध आया उनका चेहरा वानर का था वह क्रोध से भरे स्वर्ग लोक पहुंच गए वहां जाकर विष्णु भगवान से शिकायत करने लगे प्रभु मैंने तो आपसे हरि रूप मांगा था आपने मुझे यह क्या दे दिया विष्णु भगवान बोले यह भी हरि का ही रूप है मैंने आपको यह रूप इसलिए दिया ताकि आपका धर्म न भ्रष्ट हो लेकिन नारद मुनि कुछ भी सुनने को तैयार ना हुए और विष्णु भगवान को श्राप दे दिया है आपको पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ेगा और जैसे मैं नारी वियोग में दर-दर भटक रहा हूं वैसे आपको भी नारी वियोग में भटकना पड़ेगा और जिस वानर को आपने तुच्छ समझ कर मुझे यह चेहरा दिया है वही वानर आपकी मदद करेंगे नारद मुनि का श्राप सच हुआ विष्णु भगवान राम के अवतार में पृथ्वी पर जन्म लिए और सीता की खोज में उन्हें जंगल में भटकना पड़ा