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लघुकथा

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   घर, पत्नी, राज्य सब कुछ त्याग कर राजकुमार शिखिध्वज मंदिराचव पर्वत की एक गुफा में निवास कर रहे थे। शांति की तलाश में राजकुमार सन्यासी बन गये। पर जिस शांति की तलाश में उसने सब त्याग किया, क

  कभी कभी अति का विश्वास बड़े दुख की बजह बन जाता है। समाज में अपमान का कारण बन जाता है। मनुष्य सब कुछ भूल जाता है पर समाज में अपमान के कारण को आसानी से भुला नहीं पाता। इसी अपमान के अहसास में अच्छ

   एक प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान में सेठ मूलचंद्र अपने दस वर्षीय बेटे को कपङे दिलाने आये। मालिक ने सभी सैल्स मेन को सेठ जी की खिदमत में लगा दिया। घंटों की मशक्कत के बाद सेठ जी इसी नतीजे पर पहुंचे

सिंदूरी के आदमी का तबादला हो गया।बैंक की नौकरी में यही तो परेशानी है। हर दो तीन साल बाद तबादला हो जाता है। कहीं टिककर रह नहीं सकते। कुछ दिन का बसेरा और फिर उठा अपना सामान चल दिये। बिल्कुल खानाबदोश जिं

खुद को पापा की गुड़िया जानकर वह इठलाती रही। संपन्न परिवार की इकलौती रमा को लाड़ प्यार की कोई कमी नहीं थी। उसे पढाई लिखाई के पूरे मौके मिले। ऐसे में वह खुद की किस्मत पर गर्व न करे तो कैसे।   

प्रश्न चिन्ह     हर साल की तरह रूपवती ने आज फिर उपवास रखा। बहुत साल पहले दुल्हन बनकर आयी रूपवती के सारे अरमान मिट्टी में मिल गये। रूपवती बस नाम से रूपवती थी। पता नहीं उसके माॅ बाप को क्

  "पढाई कोई हसी खेल नहीं है। विद्याध्ययन खुद एक तपस्या है। संसार को भूलकर दिन रात खुद को मिटा देने के बाद ही तो शिक्षा मिलती है। तपस्या का परिणाम अवश्य मिलता है। एक न एक दिन तुम सब बहुत ऊंचे ओहदे

दादी  कस्बे की मुख्य सड़क से लगी एक सड़क जो नजदीकी गांवों को जाने का रास्ता थी, शाम होते ही रोज की तरह भर गयी। यह सड़क हर शाम कस्बे की अघोषित सब्जी मंडी बन जाती। लोगों को जरूरत का सामान खरीदने व

साड़ी  रचना जब शादी के बाद ससुराल पहुची तो उसे खुद को ढालने में बड़ी परेशानी हुई। वैसे वह खुद को नये हिसाब से ढालती गयी। पर फिर भी उसे लगता कि विवाह से पूर्व सब बात सही सही हो जातीं। फिर शादी हो

नयी शुरुआत  " रंजना । देखो तुम्हारी भाभी खाना बना रही है। तो तुम पापा और भैय्या के लिये खाना परोस दो।"   रंजना रोज देखती कि मम्मी साधना भाभी सुरूचि से बङा प्रेम करती हैं। अभी तक मम

सपनों की कब्रगाह    विद्यालय की बिल्डिंग बहुत खराब हालत में तो न थी। पर अभिवावकों का बराबर दखल हो रहा था। आखिर हो भी क्यों नहीं। विभिन्न मदों के नाम पर विद्यालय जमकर फीस भी तो बसूल रहा

आखिर प्यार किया था तुमसे    सुनयना को पत्नी पाकर राहुल के खुशियों का ठिकाना नहीं था। इतनी पढी लिखी, सुंदर लङकी उसे पत्नी रूप में मिली। राहुल को अक्सर डर रहता था कि ज्यादा पढी और सुंदर ल

नया सवेरा   अभी सूरज उगा ही था। सेठ निर्मल दास दुकान जाने की तैयारी कर रहे थे। बहू सुभाषिणी ने नाश्ता लगा दिया। सुबह सुबह नाश्ता करके निकलते और दोपहर थोङी देर खाना खाने सेठ जी घर आते थे। घर

इकतरफ़ा प्यार   बैंड बाजों की थाप पर नाचते बराती। लङकी पक्ष के लोग बरातियों के स्वागत में बिजी थे। वैसे शर्मा जी ने कोई कमी नहीं रखी थी। पर संजू के होते कुछ भी कमी रह जाये, संभव ही नहीं था।

अधूरी प्रेम कहानी    इंजीनियरिंग की पहली साल पूरी कर रोद्र दूसरी साल में आ गया। पढाई का अच्छा रिकोर्ड था। अनुसूचित जाति का  होने पर भी उसका प्रवेश जनरल कैडर में हुआ था। नियम यही था

मुकाबला     वह एक खूबसूरत चिड़िया सी फुदकती रहती। कोयल जैसी मीठी बोली से सुनने बालों का दिल जीतती रहती। मुर्गे की तरह समय की पाबंद थी। दरबाजे पर सोते श्वान की भांति सचेत रहने बाली। उसमे

यादों की बारात      सुहाग सैज पर तैयार दुल्हन अपने दूल्हे का इंतजार कर रही थी। पढी लिखी होने पर भी सुभाषिनी अनजान डर से डर रही थी। मन में कई भावनाएं आतीं और चलीं जातीं। उसका रिश्ता

नुमाइश  नयी नवेली दुल्हन राधा कुछ अल्हड़ सी, सकुचाती सी दिखाई देती। नये घर में संकोच होना आवश्यक था। हालांकि वह हमेशा से हंसमुख रहने बाली, एक चंचल हिरणी जैसी थी। एक जगह रुकना जानती नहीं थी। पर सस

तीन इंद्रधनुष   शाम से ही बारिश हो रही थी। कभी रुक रुक कर और कभी तेजी से। रामचंद्र ज्यादा परेशान था। बारिश का मौसम वैसे उसे भी अच्छा लगता था। पर छत से पानी टफकने लगता तो बारिश की सुंदरता मन

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