कभी कभी अति का विश्वास बड़े दुख की बजह बन जाता है। समाज में अपमान का कारण बन जाता है। मनुष्य सब कुछ भूल जाता है पर समाज में अपमान के कारण को आसानी से भुला नहीं पाता। इसी अपमान के अहसास में अच्छी सोच के लोग भी नीचता कर बैठते हैं।
वैसे रुक्मिणी जी आधुनिक सोच की महिला हैं। फिर भी उनसे एक भूल हो गयी। भूल कहो या अति का विश्वास। इकलौते बेटे सोमेंद्र पर उन्हें अति का विश्वास था। सोमेंद्र भी अपनी माॅ का बहुत सम्मान करता था। रुक्मिणी जी ने अपने पति के निधन के बाद सोमेंद्र को बड़ी मुश्किलों से पाल पौस कर बड़ा किया था। सोमेंद्र जो एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर है, भी अपनी माॅ की हर बात मानता है।
बस इसी लिये गलतफहमी हो गयी। सोमेंद्र को शायद अनुमान न था। रुक्मिणी को बेटे पर अति विश्वास था। पर जब उन्होंने अपने बेटे का रिश्ता अपनी सहेली की बेटी सुचित्रा से तय कर दिया तब स्थिति स्पष्ट हुई। सोमेंद्र ने माॅ की पसंद को इन्कार करते हुए अपनी पसंद की लड़की से शादी का इजहार कर दिया। दोनों की आपसी संवादहीनता का परिणाम था कि न चाहते हुए भी समाज में रुक्मिणी जी की थू थू हो गयी।
वैसे सुनीता को गुणी लड़की मानने के पर्याप्त कारण हैं फिर भी अपमान की ज्वाला रुक्मिणी जी के मन में ऐसी जली कि अक्सर बहू की अच्छाइयों में भी उन्हें बुराई नजर आने लगीं। सुनीता भी जानती थी कि सासू जी की पसंद वह नहीं थीं तो फिर उसका मन भी सास के प्रति कुछ खट्टा हो था।
दोनों विपरीत दिशाओं में चलते रहते। मध्यम मार्ग का अनुसरण कोई नहीं कर रहा था। सही गलत का प्रश्न नहीं रहा। बल्कि हर बात का विरोध ही मुख्य रह गया।
बरसात के समय सुनीता कुछ भीग गयी। रुक्मिणी ने बहू को ज्यादा फटकार दिया। एक बेटी और बहू में कुछ अंतर होता है। प्रतिउत्तर में सुनीता बारिश में ज्यादा ही नहाने लगी। शाम तक बीमार हो गयी। सास का अति विरोध उसके स्वास्थ्य पर भारी पड़ गया।
सोमेंद्र टूर पर बाहर गया था। ऐसे में सुनीता को अपनी माॅ की याद आ रही थी। माॅ जो प्रेम करना जानती है। माॅ जो बेटी के बीमारी के समय उसके पास से हिलती भी नहीं है। माॅ जिससे चिपटकर वह रात में सोती थी।
आज रुक्मिणी का मन भी वैचैन हुआ। रोकते रोकते भी वह सुनीता के पास पहुंच गयी। उसकी देखभाल करने लगी। उसके माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखने लगी। हालांकि वह अभी भी बहू को फटकार रही थी पर सुनीता को उसकी फटकार में अपनी माॅ जैसा प्यार लग रहा था।
रात को रुक्मिणी सुनीता के पास ही सो गयी। पता नहीं कब जरूरत हो जाये। थोड़ी देर बाद उसे महसूस हुआ कि सुनीता उससे चिपटने की कोशिश कर रही है। रुक्मिणी ने भी उसे अपने पास खींच लिया। बरसात की रात में रुक्मिणी और सुनीता के रिश्ते बदल गये। सास बदलकर माॅ बन गयी। वहीं बहू बदलकर बेटी बन गयी।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'