आखिर प्यार किया था तुमसे
सुनयना को पत्नी पाकर राहुल के खुशियों का ठिकाना नहीं था। इतनी पढी लिखी, सुंदर लङकी उसे पत्नी रूप में मिली। राहुल को अक्सर डर रहता था कि ज्यादा पढी और सुंदर लङकियां घमंड का पुतला होती हैं। पर सुनयना एकदम अलग निकली। पता नहीं कैसे पति के मन की बात जान जाती। हर पति पत्नी में छोटे मोटे विवाद होते हैं। पर राहुल याद कर भी कभी नहीं पाता कि उसके और सुनयना के मध्य कभी कोई विवाद हुआ हो।
सुनयना को राहुल की माॅ शारदा ने चुना था। एक शादी में देख उसपर रीझ गयीं ।तुरंत पता कर शादी की बात चलायी। सुनयना के घर बाले भी तैयार हो गये। पर परेशानी खुद राहुल ने खङी की।
"अगर तेरी नजर में कोई और लङकी है तो बता देता। हम भला उन शरीफ लोगों को क्यों परेशान करते। लङकी अच्छी लगी ।पढी लिखी भी है। पर बात तुम्हारी शादी की है। तो तुम्हारी पसंद भी मायने रखती है।" राहुल की माॅ नये विचारों की महिला थीं। राहुल को पति के गुजरने के बाद अकेले ही पाला था।
" ऐसी बात नहीं है माॅ। मेरा दोस्त सोहन ने बहुत पढी और बहुत सुंदर लङकी से शादी की। लङकी उसे पूछती भी नहीं है। उसका दुख देखा नहीं जाता। मेरे लिये तो साधारण पढाई की और साधारण सुंदरता की लङकी देखो।"
"ऐसी बात है। देख, मुझे बहुत अनुभव है। सुनयना ऐसी नहीं निकलेगी। मेरा भरोसा कर। "
आखिर माॅ पर भरोसा कर राहुल ने सुनयना से शादी कर ली। सचमुच माॅ की बात सही निकली। लङकी अच्छी है, ऐसा तो शारदा भी मानती थीं। पर इतनी अच्छी है, उन्होंने भी नहीं सोचा था।
शादी के दो साल हो चुके थे। राहुल की माता को पैरालाइसिस का अटैक पङा। सुनयना दिन रात अपनी सास की सेवा करती। जल्द ही सुनयना की सेवा से शारदा जी की तबीयत काफी ठीक हो गयी। अब नौकरानी को समझाकर सुनयना अपनी नौकरी पर जाने लगी। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सुनयना अच्छे पद पर काम करती थी।
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आज सुनयना के जीवन में विशेष खुशियां आयीं। उसके बोस ने उसे पदोन्नति का लेटर दिया। सुनयना अब आफिस की हैड थी। खुशी के मारे थोड़ा जल्दी घर आ गयी। राहुल भी आज जल्दी घर आ गये थे। घर का दरवाजा खुला था। सुनयना भीतर घुस ही रही थी कि सास और पति की बातें सुन ठिठक गयी।
"माॅ। मैं सोचता हूं कि सुनयना को नौकरी करने से मना कर दूं। अभी तक आप ठीक थीं। पर अब आपको भी तो देखना है। नौकरानी से देखभाल पूरी तरह सही नहीं है।"
" अरे ऐसे अकेले अकेले फैसले कैसे ले सकता है। बहू के भी कुछ सपने हैं। वैसे इतनी अच्छी लङकी है कि तेरे कहने से तुरंत नौकरी छोङ देगी। पर बेटा। इस तरह अकेले फैसले नहीं लेना चाहिये। बहू के मन को पढ। फिर मिलकर दोनों फैसला लेना। "
" सही कह रही हो माॅ। आखिर उसके भी कुछ सपने हैं। यदि वह खुद नौकरी छोङने की कहे तो ठीक। मैं खुद उससे इस विषय में कुछ नहीं कहूंगा। मेरा विश्वास करो। "
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सुनयना ने खाने की मेज पर खाना लगा दिया। सहारा देकर सास को कुर्सी पर बिठाया।
" सुनयना। तू भी बैठ जा। दिन भर मेहनत करती है। घर भी सम्हालती है। तुझे बहू के रूप में पाकर मैं तो धन्य हो गयी। "
" मम्मी। एक बात बतानी थी। आप से पूछे बिना बहुत बङा निर्णय ले लिया। मांफी चाहती हूं। मेने नौकरी छोङने का पत्र लिख दिया है। अभी एक महीने काम करना होगा। फिर मैं रोज अपनी मम्मी की देखभाल करूगी। "सुनयना सचमुच शारदा के गले लग गयी।
" सुनयना। कहीं राहुल ने मजबूर तो नहीं किया नौकरी छोड़ने के लिये। मेरी चिंता मत कर। यह कैरियर बनाने का समय है। "
" अरे मम्मी ।मुझसे किसी ने कुछ नहीं कहा है। अभी मेरी जरूरत घर पर है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में ज्यादा छुट्टी मिलती नहीं। अब नौकरी की तो यह है कि मेरी पढाई कौन छीन सकता है। जब मन होगा, फिर नौकरी कर लूंगी। "
आज रात सपनों में सुनयना को फिर से सुरेंद्र दिखा। कभी सुनयना के साथ कालेज तक पढे सुरेंद्र और सुनयना की बहुत पटरी खाती थी। दोनों एक दूसरे के साथ जिंदगी जीने के सपने देखते थे। पर ईश्वर को यह मंजूर न था। कैंसर जैसी बीमारी का अभी भी इलाज नहीं है। सुरेंद्र भले ही दुनिया छोड़ गया हो पर अभी भी सुनयना के सपनों में आता था।
" बहुत सही कर रही हो सुनयना। आई एम प्राउड ओफ यू।"
"अरे हलो ।मुझे सही गलत मत सिखाओ। न मैं सही जानती हूं और न गलत। बस तुमसे किये वादे को निभा रही हूं। जाने से पहले न जाने कितने वादे करा लिये मुझसे। मैं भी पागल। सोच रही थी कि जाने बाले का दिल नहीं दुखाना चाहिये। शादी कर खुद का घर बसाना। अपने पति के मन को जानते रहना। पति के मन की चुपचाप करते रहना। जाते जाते भी कितना दिमाग में भरा था तुम्हारे। पर अब तुमसे किये वायदों को तोङ भी नहीं सकती। आखिर प्यार किया था तुमसे। " आज भी सुनयना सुरेंद्र से सपने में वैसे ही झगङ रही थी, जैसे कभी झगङा करती थी।