हर साल की तरह रूपवती ने आज फिर उपवास रखा। बहुत साल पहले दुल्हन बनकर आयी रूपवती के सारे अरमान मिट्टी में मिल गये। रूपवती बस नाम से रूपवती थी। पता नहीं उसके माॅ बाप को क्या सूझा कि अपनी बदसूरत लङकी का नाम का नाम रूपवती रख दिया। उससे भी बङी बात कि रूपवती के सास ससुर को पता नहीं क्यों भा गयी। आखिर गुण भी कोई चीज है। पर रूपवती के पति सुरेश को इसमें धोखा ही लगा। उसे अपने पिता की बात पर बहुत भरोसा था। सो लङकी देखने भी नहीं आया। अब घर में किसने किसको झूठ बोला पर इसमें रूपवती का कोई दोष न था। शादी के दस साल हो गये। वह तो सास और ससुर अच्छे थे, अन्यथा पति की बेरूखी के बाद किसी लङकी की जिंदगी कैसे होती है बताना जरूरी नहीं है।
हर साल की तरह आज भी चांद ने लुका-छिपी का खेल खेला। बादलों के पीछे न जाने क्या है कि चांद हर साल इंतजार कराता। पर चांद का इंतजार खत्म हुआ। चांद को जल देकर रूपवती अपने असली चांद का इंतजार कर रही थी। शायद आज दीदार दे जाये। नहीं तो दस सालों से कभी भी दीदार नहीं हुआ। आखिर चांद भी बादलों से निकल आया है। फिर सुरेश की इतनी बेरुखी। दूसरी तरफ सुरेश खूबसूरत लङकियों के साथ अय्याशी में व्यस्त था। एक प्रश्न चिन्ह के साथ कि रूपवती को इस चांद का इंतजार कब तक और क्यों करना चाहिये।