अधूरी प्रेम कहानी
इंजीनियरिंग की पहली साल पूरी कर रोद्र दूसरी साल में आ गया। पढाई का अच्छा रिकोर्ड था। अनुसूचित जाति का होने पर भी उसका प्रवेश जनरल कैडर में हुआ था। नियम यही था कि अनुसूचित जाति के बच्चों की मैरिट जनरल की मेरिट को क्रोस कर जाती, वह जनरल में प्रवेश पा जाते। अब कुछ बदलाव हुआ है। इस बात को बताने का सिर्फ इतना आशय है कि रोद्र पढने में बहुत अच्छा था। प्रथम वर्ष में भी विद्यालय के टाॅप विद्यार्थियों में शुमार था। वैसे विद्यालय में टाॅप के दस बच्चों में फर्क कर पाना हमेशा कठिन रहा है। सभी बराबर के होशियार, बराबर के मेहनती।परिणाम में कोई आगे और कोई थोड़ा पीछे रह जाता।
" मैं आई कम इन सर। आई एम न्यू कमर इन क्लास। आई हेव टेकिन डायरेक्ट एडमिशन इन सैकंड ईयर इन डिप्लोमा स्टूडेंट कोटा।"
कक्षा के दरबाजे पर थोङी सांवली लङकी खङी थी। रोद्र की अंग्रेजी थोड़ा कमजोर थी। लङकी का बोलना उसे बहुत प्यारा लगा। रंग जरूर सांबला था पर चेहरे की वनावट बहुत खूबसूरत। पतले पतले होठ, थोङी लंबी नाक, गोल चेहरा, कंधे तक लटकते छोटे बाल, पहली पंक्ति में बैठा रोद्र लङकी को देखता ही रहा। केवल रोद्र ही नहीं, बाकी सब की नजरें भी लङकी पर थीं। पिंक कलर के सूट में कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी।
"कम इन।" विषय अध्यापक की अनुमति के साथ ही लङकी कक्षा में आयी। रोद्र के बगल की बैंच खाली थी। वहीं बैठ गयी। रोद्र पसीने से तर बतर हो गया। ऐसी बात नहीं थी कि रोद्र लङकियों से बोलता न हो। पर आज थोङा असहज हो रहा था।
धीरे धीरे दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। लङकी का नाम प्रिया मिश्रा था। ब्राह्मण परिवार की लङकी थी। डिप्लोमा किये हुए थी। डिप्लोमा किये छात्रों को इंजीनियरिंग में सीधे दूसरे वर्ष में प्रवेश मिलता है। प्रिया ने भी इसीलिये दूसरी साल में प्रवेश लिया। अच्छी मेहनती लङकी थी। रोद्र और प्रिया की अच्छी दोस्ती हो गयी। दोनों एक दूसरे की मदद करते।
रोद्र जानता था कि उसका झुकाव प्रिया के प्रति ज्यादा होता जा रहा है । शायद वह दोस्ती से बहुत बङकर सोचने लगा था। जीवन पथ पर प्रिया को साथ ले बढने के सपने देखने लगा था।
दो साल बीत गये। रोद्र और प्रिया इंजीनियरिंग तीसरे वर्ष के छात्र थे। वैलंटाइन डे पर रोद्र ने एक गुलाब का फूल खरीदा। एक कागज पर मन की बातों को लिखा।
"प्रिया। जिस दिन तुम्हें देखा, उसी दिन कुछ हो गया। मैं तुम्हें दोस्त से अधिक समझता हूं। पूरा जीवन तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं।"
चंद लाइनें लिखने में भी रोद्र नर्बस हो गया। सबसे ज्यादा चिंता थी कि कहीं प्रिया नाराज हो गयी। कहीं प्रिया ने नाराज होकर दोस्ती तोड़ दी। पर कुछ भी हो। आखिर सच बताना ही था। आज से अच्छा मौका रोद्र को कभी नहीं मिल सकता।
पर जिसका डर था, वही हुआ। प्रिया नाराज हो गयी। रोद्र कइयों की आंखों में पहले से ही चुभता था। प्रिया को कई समझाने वाले थे। रोद्र की शिकायत करो। पर प्रिया ने ऐसा कुछ नहीं किया। दोनों की अच्छी दोस्ती टूट गयी। रोद्र ने भी संतोष कर लिया। जब प्रिया के दिल में उसके लिये दोस्ती से आगे कुछ भी नहीं था तो रोद्र ने समझने में गलती की।
अंतिम वर्ष की परीक्षा देकर सभी लङके घर जाने की तैयारी कर रहे थे। कुछ की नौकरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कैंपस सलेक्शन से लग गयी। कुछ एम टेक करने के उत्सुक थे। चार साल के दोस्तों से मिलने का दौर चल रहा था।
"रोंद्र । आखिरी बार तुमसे एक बात करनी है।"
रोंद का अंदाजा नहीं था कि प्रिया उससे बात करने को खङी है।
"एक्स्यूम मी प्रिया। मैं तुम्हारी भावनाओं को समझ नहीं पाया। तुम्हारी दोस्ती भी खो बैठा।"
"रोद्र। थोङा अलग चलकर बात करते हैं।"
सबसे दूर चलकर मैदान के एक कौने में रोंद्र और प्रिया खङे थे।
"रोद्र। तुमने मेरी भावनाओं को समझने में गलती नहीं की थी। मैं भी ऐसा ही सोचती थी। पर सच्चाई बहुत अलग है। मेरा परिवार तुम्हें कभी स्वीकार नहीं कर पाता। मैं खुद तुम्हारे साथ जीवन जीना चाहती थी। पर फिर मेरी छोटी बहन का क्या होता। ब्राह्मणों में अक्सर बङों की गलतियों का दंड छोटे चुकाते हैं। छोटी से कोई शादी नहीं करता। मैं तुमसे दूर भागना चाहती थी। खुद तुम्हारी दोस्ती तोङना चाहती थी। क्योंकि दोस्ती, शायद दोस्ती से आगे बढ गयी थी। प्रेम की हिलोरें मन में उठने लगीं थीं। मैं अब भी तुमसे दूर भागना चाहती हूं। बस दूर जाने से पहले एक बार सही बात बताने आयीं हूं। अब मेरी तुमसे कोई दोस्ती नहीं है। मैं जा रही हूॅ । "
प्रिया मुंह फेरकर चली गयी। आंखों में आंसू बहाता रोद्र उसे देखता रहा।