नुमाइश
नयी नवेली दुल्हन राधा कुछ अल्हड़ सी, सकुचाती सी दिखाई देती। नये घर में संकोच होना आवश्यक था। हालांकि वह हमेशा से हंसमुख रहने बाली, एक चंचल हिरणी जैसी थी। एक जगह रुकना जानती नहीं थी। पर ससुराल में उसके पैर जम गये। मुंह पर टेप सा लग गया।
राधा का आदमी सोहन दूर कस्बे में एक फैक्ट्री में काम करता था। वहीं उसका ससुर भी नौकर था। अब सभी के भाग्य में तो जमीन नहीं होती। फिर गुजर वसर के लिये आदमियों को गांव छोड़ना होता।
गांव में राधा के साथ बस उसकी सास जमुना थी। जमुना जरा मोटे शरीर की, कुछ कठोर सी लगने बाली स्त्री। उसे देख राधा की हिम्मत और जबाब दे जाती। मायके से बड़ी बूढियों ने बहुत सिखा पढा कर भेजा था। पहले से शादीशुदा उसकी सहेलियों ने जो अपनी सास का पुराण उसे सुनाया था फिर उसे जमुना भी ललिता पवार लगती।
जमुना अपनी तरफ से राधा का ध्यान रखती। पर उसका भी बोलने का अपना तरीका था। बहुत समय से घर में अकेली स्त्री रही उसकी आवाज जरा ऊंची ही थी। कोशिश करके भी वह राधा की उदासी दूर न कर पायी।
जमुना चाहती कि राधा बाहर निकले। अपनी उमर की लड़कियों से हस बोल मन बहलाये। पर जानती थी कि अब उसे किसके साथ की जरूरत है। वह खुद भी भुक्तभोगी थी। जब वह शादी होकर आयी थी, उसका आदमी भी कमाने शहर चला गया था। दिन रात उसी की याद तो वह करती थी। बहू की भी वही हालत होगी।
दीपावली पर कुछ दिन की छुट्टी मिली। सोहन कुछ दिन घर रुका। राधा भी जरा खिली खिली रही। हालांकि जमुना से कटी कटी रही।
दूसरे गांव में एक नुमाइश लग रही थी। कुछ खेल, तमाशे थे। सोहन भी जा रहा था। अपने बचपन के दोस्तों के साथ।
जमुना ने सोहन को रोक दिया। सोहन नुमाइश देखने जायेगा पर बहू के साथ। आवाज अभी भी जमुना की तेज थी। पर न जाने क्यों आज राधा को मधुर संगीत जैसी लगी।
नुमाइश में दोनों घूमे। साथ चांट खायी। फिर राधा भी मचल गयी। उसे झूले पर बैठना था। पर अकेले नहीं। सोहन के साथ।
सोहन टालता रहा। सच बताना नहीं चाहता था। औरत क्या समझेगी। मर्दानगी की डींग भरने बाला उसका आदमी झूला झूलने से डरता है।
राधा ने सोहन के साथ झूला झूला। सोहन रोकते रोकते भी अपना डर छिपा न सका। राधा के चेहरे पर एक मधुर मुस्कान थी। पता नहीं क्या था। शायद पुरूष पर स्त्री की विजय का आनंद मना रही थी।
सोहन अब वापस चला गया। राधा गुमसुम हुई। पर फिर ज्यादा देर चुप न रह सकी। अब उसे अपने घर में जमुना सास नहीं बल्कि सहेली ज्यादा लगने लगी। मन की गांठ खुल गयी। अब घर में राधा की आवाज़ भी जमुना के बराबर सुनाई देती है। घर के बाहर भी राधा चहचहाती घूमती है।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'