यादों की बारात
सुहाग सैज पर तैयार दुल्हन अपने दूल्हे का इंतजार कर रही थी। पढी लिखी होने पर भी सुभाषिनी अनजान डर से डर रही थी। मन में कई भावनाएं आतीं और चलीं जातीं। उसका रिश्ता उसने पिता ने तय किया था।सुभाषिनी ने पिता की पसंद पर कोई ऐतराज नहीं किया। पर मन में एक इच्छा तो थी कि अपने होने बाले दूल्हे से चंद बातें हो जायें। पर सुदर्शन शायद सुभाषिनी से भी बढकर था। न तो शादी से पहले खुद लड़की देखने आया और न कभी बात की। पर अब वह क्षण आने बाला था जिसका सुभाषिनी को इंतजार था। कुछ लाज के कारण हिम्मत जबाब दे रही थी।
सुदर्शन आया और दूर सोफा पर बैठ गया। अपनी दुल्हन से सीधे वार्ता करने की उसकी भी हिम्मत नहीं हो रही थी। बहुत समय बीत गया। दोनों एक दूसरे के पहल की बाट जोट रहे थे।
"कुछ अपने बारे में बताओ। कुछ अपनी पसंद नापसंद बताओ। आखिर अब हमारी शादी हो गयी है।" पहल सुदर्शन ने ही की। सुभाषिनी हिम्मत कर बातें करने लगी। बचपन से अब तक का सफर.. ।दोनों धीरे धीरे खोल रहे थे। अपने जीवन साथी के दरमियान कोई पर्दा न रहे। दोनों एक दूसरे को समझ लें। वैसे दोनों के पिता की ट्रांसफर की नौकरी थी। दोनों का बचपन अलग अलग शहर में बीता। बचपन की यादों को बताते बताते दोनों एक ही शहर की कुछ भूली बिसरी यादों को याद करने लगे।
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नूतन विद्या निकेतन में कक्षा छह के छात्र ज्यादा ही शरारती थे। अभी बचपन गया नहीं था। छोटी छोटी शरारतें कई बार बड़ा रूप भी ले लेतीं थीं। सुदर्शन की एक लड़की सुभाषिनी से ज्यादा ही लड़ाई होती थी । न तो सुदर्शन कम पड़ता और न सुभाषिनी। दोनों एक दूसरे को परेशान करने के तरीके देखते रहते।
सुदर्शन को देख सारे लङके हस रहे थे। आखिर में जब पता चला कि उसकी कमीज पर एक कार्टून बना है तो फिर सुदर्शन सुभाषिनी को पीटने भागा। सुभाषिनी पहले से तैयार थी। भाग कर प्रधानाचार्य कक्ष के बाहर तक पहुंच गयी। शायद यहाॅ खुद को सुरक्षित समझ रही थी।
"कब तक छिपी रहेगी। आज छोड़ूंगा नहीं तुझे।"
आज सुदर्शन ज्यादा ही गुस्से में था। बाहर ही इंतजार करता रहा। सुभाषिनी को लगा कि खतरा टल गया है तो बाहर निकली। पर यह क्या। थोड़ा आगे बढी थी कि उसकी चोटी सुदर्शन के हाथ में थी।
"मेरी चोटी छोड़ दे। बर्ना अभी मैडम को शिकायत कर दूंगी। "
" अच्छा। तो मैं भी तो मैडम को अपनी कमीज दिखा दूंगा। फिर पिटाई तो तेरी भी होगी।"
समय का तकाजा यही था कि दोनों अपनी लड़ाई भूल जायें नहीं तो दोनों की स्थिति एक सी थी। क्लास में जाने पर मैडम की फटकार मिलती। दोनों चुपचाप मैदान में पहुंच गये।
" अच्छा। तू मुझे तंग क्यों करती है। "
" मुझे आनंद आता है। मैं तो चाहती हूं कि तुझे जीवन भर तंग करती रहूं।"
बच्चे कुछ भी बोल देते हैं। फिर सुभाषिनी के पिता का स्थानांतरण हुआ, फिर काफी दिनों तक सुदर्शन को अच्छा नहीं लगा। सुभाषिनी भी गुमसुम रही। धीरे-धीरे वह याद मन में कहीं भूल गयी और आज पुरानी यादों की बारात में उसी को याद कर दोनों मुस्कराने लगे।
" अच्छा। तो तुमसे तो अपनी कमीज भी छिपाकर रखनी होगी।"
"पर अब मेने अपने बाल कटवा दिये हैं। अब चुटिया नहीं बनाती हूं फिर अब तो मेरा ही पलड़ा भारी रहेगा।"
भूली बिसरी यादों को याद कर दोनों शरमा गये। इतने बीच में दोनों काफी नजदीक आ चुके थे।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'