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कुछ दिन का बसेरा

29 अगस्त 2022

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सिंदूरी के आदमी का तबादला हो गया।बैंक की नौकरी में यही तो परेशानी है। हर दो तीन साल बाद तबादला हो जाता है। कहीं टिककर रह नहीं सकते। कुछ दिन का बसेरा और फिर उठा अपना सामान चल दिये। बिल्कुल खानाबदोश जिंदगी। पर थोङे दिन को भी जहाॅ टिकते, वहाॅ कुछ लगाव हो जाता। बैसे सिंदूरी खुद समझदार थी। 

आज ही उसके पति सुरेश का फोन आया। एक दो कमरे का मकान ठीक कर लिया है। अब अगले सप्ताह वह आयेगा। और फिर सिंदूरी अपने नये ठिकाने को चली जायेगी। 

थोङी सी खाली जगह में कुछ पौधे बो रखे थे। सिंदुरी उन्हे पानी देती। फूलों से उसे प्यार था। कुछ गेंदा और कुछ नौबजिया। दो तुलसी की पौध भी थीं। सिंदूरी उन्हें अपलक निहार रही थी। अब कुछ दिनों बाद वह यहाॅ से चली जायेगी। दूसरा इनका कैसे ख्याल रखेगा। 

सुरेश बोलता भी था। इतना मोह मत रखो। पर कैसे न रखें। आदमियों का क्या है। कुछ भी कह जाते हैं। औरतों के जज्बात समझता ही कौन है। कुछ दिन के बसेरे से भी मोह हो जाता है। एक एक कमरा उसका जाना पहचाना लगता है। हर पौधे रोज उसे पुकारते हैं। उनसे ऐसे बात करती जैसे घर के सदस्य हों। 

सिंदूरी यादों की नाव पर बैठ बहुत दूर तक चली गयी। बचपन में छोटी सी सिंदूरी अपने बाबू से जिद कर रही। सिंदूरी बङी लाङली थी। 

और न जाने कितनी बातें याद कीं। पर एक दिन उसे पता चला कि अब उसे दूसरे घर जाना है। सिंदूरी सचमुच रो दी। तो बचपन से जिस घर में रहती आ रही, वह उसका घर नहीं है। सिंदूरी गुमसुम बैठी थी। फिर दादी ने प्यार से समझाया। 

'' बिटिया। यह तो कुछ दिन का बसेरा है। जब तक शादी न हो तब तक लङकी माॅ बाप की होती है। और शादी के बाद साजन की होती है। पति का घर ही लङकी का घर होता है। उसी को बनाना पढता है। जहाॅ पैदा हुए, उसे भूलना पङता है। '

' पर दादी। हम क्यों अपना घर छोङ के जायें। इस घर में हम पैदा हुए। अब यह कुछ दिन का ठिकाना क्यों है। '

दादी पढी लिखी तो ज्यादा न थी। पर अनुभव की खान थी। कई कहानियां पता नहीं सच्ची और झूठी सुनाने लगीं। मतलब यह था कि भगवान ने लङकी को बङे जतन से बनाया है। कुछ काम ऐसे हैं जो आदमी नहीं कर सकता। और लङकी सब कुछ कर सकती है। तो जिसकी सामर्थ्य ज्यादा, उसकी जिम्मेदारी भी ज्यादा होती है। कहानी कहते कहते दादी भी न जाने कहाॅ खो गयीं। सिंदूरी को पहली बार लङकी होने पर फक्र हुआ। 

यादो की नाव अचानक वर्तमान में वापस आ गयी। उसे सुरेश का साथ देना है। नये ठिकाने पर जाने की तैयारी करनी है। पर कुछ दिन का बसेरा कभी भूलता नहीं। आज भी उसे अपने बचपन का बसेरा याद आता है। लगता है उस रोज दादी भी अपने बचपन के बसेरे को याद कर गुम हो गयीं थीं। बसेरा चाहे कुछ दिन का ही हो पर भूल नहीं सकते।
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