मुकाबला
वह एक खूबसूरत चिड़िया सी फुदकती रहती। कोयल जैसी मीठी बोली से सुनने बालों का दिल जीतती रहती। मुर्गे की तरह समय की पाबंद थी। दरबाजे पर सोते श्वान की भांति सचेत रहने बाली। उसमें कोई कमी न थी ।वह किसी से कम न थी। पर उसे बराबर अहसास दिलाया जाता रहा कि वह एक लड़की है। लड़के से कम है। उसके गुण कोई गुण नहीं। पुरुष के दुर्गुण भी गुण होते हैं।
आज भी वह उसी तरह की है। पर अब वह चिड़िया फुदकती नहीं है। आवाज जरूर कोयल सी मधुर है। फिर भी वह कमतर है। आखिर वह एक स्त्री जो है।
सुबह सूरज की किरणें धरती पर आ भी न पातीं, वह जग जाती है। फिर पूरे दिन घर और परिवार को सम्हालती है। वैसे वह बाहर का काम भी सम्हाल सकती है। पर पति को उसकी क्षमता पर विश्वास नहीं। आखिर क्यों हो। आखिर पति एक पुरुष है। पुरुष को स्त्री की क्षमता पर विश्वास नहीं करना चाहिये। बचपन से ही यही सीखता आया है।
पति को कुछ लिखने का शौक लग गया है । अपने मन के भावों को अच्छी तरह व्यक्त कर लेता है । साहित्यकारों के मध्य उसे वाहवाही मिलती है।
लिखती वह स्त्री भी है। पर चुपचाप। बिना किसी को बताये। अनेकों छोटी कविताओं और कहानियों से उसकी डायरी गुलजार रहती। पर वह डायरी केवल उसी की थी। दुनिया से अज्ञात। वह नहीं चाहती कि दुनिया अब उसकी क्षमता देखे।
पुरुष ने देखा एक चित्र। समझ न पाया। आखिर क्या आशय है चित्र का। चित्र को केंद्र में रख भला कौन सी कहानी या कविता बन सकती है। एक तरफ एक पुरुष। दूसरी तरफ एक मुर्गी, श्वान, एक अस्पष्ट सी आकृति - पता नहीं कि पुरुष या स्त्री की, आसमान में उड़ने की कोशिश में एक काली चिड़िया जो शायद कोयल है।
दोनों के मध्य एक तराजू। शायद दोनों पक्षों की तुलना का सूचक।
न चित्र का अर्थ समझ आया और न भाव। भाव तो तभी आते हैं जबकि खुद उन्हें परखा हो। खुशी या गम वही जानता है जो कि खुद भुगता हो। जब सर के ऊपर सूरज चढ आया, उस समय उठकर फिर स्त्री पर हुकुम चलाते रहना, उसके काम में कमियों को उजागर करते रहना, बार बार उसे कमतर बताते जाना, सच यही तो होता है हर रोज।उसे परेशानियों का क्या परिचय।
आज स्त्री की डायरी एक छोटी कहानी से गुलजार हो गयी। तराजू के एक तरफ पुरुष तो दूसरी तरफ वही तो है। अनेकों रूप रखे, पुरुष को मात देती। तराजू अभी बराबर है। क्योंकि स्त्री अभी पलड़े पर चढी नहीं है। दूसरी तरफ पुरुष के चेहरे पर मुस्कान या घवराहट। मुकाबला वह भी नहीं चाहता। जानता है कि पलड़ा स्त्री का ही नीचे झुकेगा।
दोनों तराजू के दोनों तरफ एक दूसरे को ताक रहे हैं। स्त्री के पक्ष में एकतरफा मुकाबला बराबरी का बन गया है।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'