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मुकाबला

9 अगस्त 2022

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मुकाबला 

    वह एक खूबसूरत चिड़िया सी फुदकती रहती। कोयल जैसी मीठी बोली से सुनने बालों का दिल जीतती रहती। मुर्गे की तरह समय की पाबंद थी। दरबाजे पर सोते श्वान की भांति सचेत रहने बाली। उसमें कोई कमी न थी ।वह किसी से कम न थी। पर उसे बराबर अहसास दिलाया जाता रहा कि वह एक लड़की है। लड़के से कम है। उसके गुण कोई गुण नहीं। पुरुष के दुर्गुण भी गुण होते हैं।

  आज भी वह उसी तरह की है। पर अब वह चिड़िया फुदकती नहीं है। आवाज जरूर कोयल सी मधुर है। फिर भी वह कमतर है। आखिर वह एक स्त्री जो है।

   सुबह सूरज की किरणें धरती पर आ भी न पातीं, वह जग जाती है। फिर पूरे दिन घर और परिवार को सम्हालती है। वैसे वह बाहर का काम भी सम्हाल सकती है। पर पति को उसकी क्षमता पर विश्वास नहीं। आखिर क्यों हो। आखिर पति एक पुरुष है। पुरुष को स्त्री की क्षमता पर विश्वास नहीं करना चाहिये। बचपन से ही यही सीखता आया है। 

  पति को कुछ लिखने का शौक लग गया है । अपने मन के भावों को अच्छी तरह व्यक्त कर लेता है । साहित्यकारों के मध्य उसे वाहवाही मिलती है। 

  लिखती वह स्त्री भी है। पर चुपचाप। बिना किसी को बताये। अनेकों छोटी कविताओं और कहानियों से उसकी डायरी गुलजार रहती। पर वह डायरी केवल उसी की थी। दुनिया से अज्ञात। वह नहीं चाहती कि दुनिया अब उसकी क्षमता देखे। 

  पुरुष ने देखा एक चित्र। समझ न पाया। आखिर क्या आशय है चित्र का। चित्र को केंद्र में रख भला कौन सी कहानी या कविता बन सकती है। एक तरफ एक पुरुष। दूसरी तरफ एक मुर्गी, श्वान, एक अस्पष्ट सी आकृति - पता नहीं कि पुरुष या स्त्री की, आसमान में उड़ने की कोशिश में एक काली चिड़िया जो शायद कोयल है। 

   दोनों के मध्य एक तराजू। शायद दोनों पक्षों की तुलना का सूचक। 

  न चित्र का अर्थ समझ आया और न भाव। भाव तो तभी आते हैं जबकि खुद उन्हें परखा हो। खुशी या गम वही जानता है जो कि खुद भुगता हो। जब सर के ऊपर सूरज चढ आया, उस समय उठकर फिर स्त्री पर हुकुम चलाते रहना, उसके काम में कमियों को उजागर करते रहना, बार बार उसे कमतर बताते जाना, सच यही तो होता है हर रोज।उसे परेशानियों का क्या परिचय। 

  आज स्त्री की डायरी एक छोटी कहानी से गुलजार हो गयी। तराजू के एक तरफ पुरुष तो दूसरी तरफ वही तो है। अनेकों रूप रखे, पुरुष को मात देती। तराजू अभी बराबर है। क्योंकि स्त्री अभी पलड़े पर चढी नहीं है। दूसरी तरफ पुरुष के चेहरे पर मुस्कान या घवराहट। मुकाबला वह भी नहीं चाहता। जानता है कि पलड़ा स्त्री का ही नीचे झुकेगा।

  दोनों तराजू के दोनों तरफ एक दूसरे को ताक रहे हैं। स्त्री के पक्ष में एकतरफा मुकाबला बराबरी का बन गया है। 

   दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'
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रचनाएँ
लघुकथाओं की दुनिया
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लघुकथाओं का संग्रह
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7 अगस्त 2022
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प्लेटफार्म वह बचपन से अनाथ, किसी तरह पला बढा, रेलवे के एक छोटे स्टेशन के प्लेटफार्म पर कूढे के ढेर से अपने जीवन के रास्ते तलाशता रहा, जब किशोर हुआ तब कुछ कुसंगति के चपेट में आ गया। कुसंगति

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7 अगस्त 2022
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9 अगस्त 2022
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यादों की बारात सुहाग सैज पर तैयार दुल्हन अपने दूल्हे का इंतजार कर रही थी। पढी लिखी होने पर भी सुभाषिनी अनजान डर से डर रही थी। मन में कई भावनाएं आतीं और चलीं जातीं। उसका रिश्ता

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9 अगस्त 2022
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10 अगस्त 2022
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अधूरी प्रेम कहानी इंजीनियरिंग की पहली साल पूरी कर रोद्र दूसरी साल में आ गया। पढाई का अच्छा रिकोर्ड था। अनुसूचित जाति का होने पर भी उसका प्रवेश जनरल कैडर में हुआ था। नियम यही था

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11 अगस्त 2022
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नया सवेरा अभी सूरज उगा ही था। सेठ निर्मल दास दुकान जाने की तैयारी कर रहे थे। बहू सुभाषिणी ने नाश्ता लगा दिया। सुबह सुबह नाश्ता करके निकलते और दोपहर थोङी देर खाना खाने सेठ जी घर आते थे। घर

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13 अगस्त 2022
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साड़ी रचना जब शादी के बाद ससुराल पहुची तो उसे खुद को ढालने में बड़ी परेशानी हुई। वैसे वह खुद को नये हिसाब से ढालती गयी। पर फिर भी उसे लगता कि विवाह से पूर्व सब बात सही सही हो जातीं। फिर शादी हो

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29 अगस्त 2022
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"पढाई कोई हसी खेल नहीं है। विद्याध्ययन खुद एक तपस्या है। संसार को भूलकर दिन रात खुद को मिटा देने के बाद ही तो शिक्षा मिलती है। तपस्या का परिणाम अवश्य मिलता है। एक न एक दिन तुम सब बहुत ऊंचे ओहदे

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सिंदूरी के आदमी का तबादला हो गया।बैंक की नौकरी में यही तो परेशानी है। हर दो तीन साल बाद तबादला हो जाता है। कहीं टिककर रह नहीं सकते। कुछ दिन का बसेरा और फिर उठा अपना सामान चल दिये। बिल्कुल खानाबदोश जिं

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29 अगस्त 2022
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कभी कभी अति का विश्वास बड़े दुख की बजह बन जाता है। समाज में अपमान का कारण बन जाता है। मनुष्य सब कुछ भूल जाता है पर समाज में अपमान के कारण को आसानी से भुला नहीं पाता। इसी अपमान के अहसास में अच्छ

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29 अगस्त 2022
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घर, पत्नी, राज्य सब कुछ त्याग कर राजकुमार शिखिध्वज मंदिराचव पर्वत की एक गुफा में निवास कर रहे थे। शांति की तलाश में राजकुमार सन्यासी बन गये। पर जिस शांति की तलाश में उसने सब त्याग किया, क

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