"पढाई कोई हसी खेल नहीं है। विद्याध्ययन खुद एक तपस्या है। संसार को भूलकर दिन रात खुद को मिटा देने के बाद ही तो शिक्षा मिलती है। तपस्या का परिणाम अवश्य मिलता है। एक न एक दिन तुम सब बहुत ऊंचे ओहदे पर पहुंचोगे। बशर्ते है कि तपस्या में कोई कमी न रह जाये।"
ये वही वाक्य थे जिन्हें निष्कर्ष अपने बच्चों को सुनाता था। इन्हीं प्रेरक वाक्यों से उनका हौसला बढाता था। बच्चों की तपस्या सफल हुई। बड़ा लड़का एक बड़े विभाग में अधिकारी बन गया। छोटा भी एक बड़ी कंपनी में मैनेजर बन गया। धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। आखिर इतनी तपस्या के बाद उन्हें फल मिला था।
निष्कर्ष आज भी गांव के अधटूटे मकान के एक कमरे में रहता है। वहीं गांव के कुछ लोग उसकी देखभाल कर लेते हैं। बच्चों को तपस्या का फल मिला। पर निष्कर्ष की वह तपस्या, उसकी दिन रात की वह मेहनत, बच्चों की फीस जुटाने का उसका उद्योग, आज भी अपने फल का इंतजार कर रही है।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'