नयी शुरुआत
" रंजना । देखो तुम्हारी भाभी खाना बना रही है। तो तुम पापा और भैय्या के लिये खाना परोस दो।"
रंजना रोज देखती कि मम्मी साधना भाभी सुरूचि से बङा प्रेम करती हैं। अभी तक मम्मी का सारा प्यार केवल रंजना को मिल रहा था। पर भैय्या की शादी के साथ उसे प्रेम भी बटता लगने लगा। वह अपनी सहेलियों को अपनी भाभियों पर हुक्म चलाती देखती। पर यहाॅ तो उल्टी ही लीला थी। वह आखिर घर की लङकी है। उसे ज्यादा तबज्जो मिलनी चाहिये।
रंजना बोलती तो कुछ नहीं पर धीरे धीरे मन में सुरुचि के प्रति ईर्ष्या बढती गयी। अजीब महारानी है। लगता है कि इसकी माॅ ने कुछ सिखाया भी नहीं है। कहीं ननदों से घर का काम कराते हैं। पर जब आंचल खुद का मैला हो तो दोष भला किसे दिया जाये। आखिर मम्मी ही उसका इतना साथ देती हैं। आखिर एक दिन रंजना ने अपना गुस्सा मम्मी पर उतार दिया।
" माॅ... तुम भी भाभी को ज्यादा सर चढा रही हो। वह तो भूल ही रही हैं कि वह घर की बेटी नहीं बल्कि बहू हैं।"
" पर रंजना। तुम्हें ऐसा कैसे लगता है कि सुरुचि की जगह इस घर में बेटी से कम है। आखिर सुरुचि के माॅ बाप ने उसकी जिम्मेदारी हमें दी है। वह मुझे अपनी मम्मी की तरह मानती है। तो मैं क्यों न उसे अपनी बेटी मानूं। मेरी अब दो बेटी हैं। सुरुचि और रंजना। "साधना भी रंजना की बात सुन नाराज हो गयीं।
" पर मम्मी... आप तो उन्हें बिलकुल नहीं टोकती। भाभी तो कई बार मोडर्न कपङे भी पहन लेती हैं। अब बहू पर इतनी तो रोकटोक होनी चाहिये। " रंजना अभी भी बहस कर रही थी।
साधना ने रंजना को पास बिठाया। बङे प्यार से बोलीं - " रंजना। जिस तरह तुझे कोई रोकटोक नहीं है, उसी तरह सुरुचि को भी कोई रोकटोक नहीं है। अमर्यादित कपङे तुम या सुरुचि कोई भी पहनेंगी, मैं फटकारूंगीं। पर बेटी.. एक बात सोच। तू भी शादी होकर अपनी ससुराल जायेगी। अगर तेरी ससुराल में तेरे साथ और तेरी ननद के साथ भेदभाव हो तो फिर तुझे कैसा लगेगा। बहू भी किसी की बेटी होती हैं। उनके भी कुछ शौक होते हैं। उनकी भी कुछ इच्छायें होती हैं। तू खुद ठंडे दिमाग से सोच। "
साधना जी इतना बोलकर चली गयीं। रंजना खुद सोचने लगी। अपनी सहेलियों की भाभियों की जगह खुद को रखकर रंजना मम्मी की बातों को सोच रही थी। अचानक रंजना उठकर किचन में पहुंची। सुरुचि शाम के खाने की तैयारी कर रही थी।
" भाभी। आज मैं खाना बनाऊंगी। आप बताना कि मैं कितना सही बना पाती हूं।"
" आप रहने दो दीदी। मेरे रहते आप खाना बनायें।" सुरूचि भी अपनी मर्यादा जानती थी।
" अरे। अगर आपकी छोटी बहन काम में कमजोर रह गयी तो ठीक नहीं होगा। आप बस मेरी गलती समझाना। खाना मैं बनाऊंगी। "
आज रंजना ने सुरुचि के साथ नये रिश्ते की शुरुआत की है।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'