शीर्षक --मजदूर हाँ मैं मजदूर हूँ,लेकिन कमजोर नही हूँ,खून पसीने बहाता हूँ,फिर भी मजबूर नही हूँमेहनत से कमाता हूँ,देश का आधार हूँ,मत करो मुझसे,भेदभाव,सब कुछ भूल कर,हम मेहनत मजदूरी करते हैं।खुद के
मजदूरदेश की नींव और निर्माण है मजदूर।असली प्रगति के हकदार हैं मजदूर।।खून पसीने से भारत माता को सींचते हैं।देश की तकदीर अपने कंधों पर खींचते।।नव नीड़ मनुज के लिए निर्माण करते हैं।अपने पेट की खातिर चिलच
इनको मानों न छोटा इन्सान,करते हैं ये बड़े बड़े काम,इनके खून पसीने पर तो,बन जाते हैं बड़े बड़े नाम।बिन इनके ये दुनियां अधूरी,परियोजनाएं कभी न होती पूरी,गर मजदूर न बहाता पसीना,संसार का मुश्किल हो जाता जीना।
एक लड़की अनजानी सीपरसो रात्रि करीबन साढ़े ग्यारह बजे मे आॅफिस से घर को बाइक से निकला ही था की कुछ ही दूरी पर एक लडकी नजर आई सलवार सूट पहने मदद का हाथ लिए इशारे से... मैने बाइक रोकी तो पास से टैक्
पूरी इमारत पर एक ही छाप है। पसीने से लथपथ मजदूर का हाथ है।। परिश्रम भाग्य की लकीर मिटा देती है। ज्योतिष भविष्यवाणी सब हटा देती है।। एक एक ईट क्रम से लगा है । तपती धूप हाथ क
एक गरीब मजदूर था जो अपनी दिनचर्या के लिए रोज़ाना शहर के बाहर चला जाता था। उसे रोज़ कुछ न कुछ काम मिलता था जिससे उसका पेट भरता और घर के लिए कुछ पैसे भी बचते थे। वह अपने कठिन जीवन में भी सबसे खुश था। ए
आज 1 मई को हम श्रमिक डे मजदूर दिवस के रूप में मनाते हैं। क्या हम मजदूर दिवस मनाने से कुछ कर पाएंगे उन मजदूरों के हित मे जिन्हें पूरे दिन मेहनत करने पर सिर्फ इतने पैसे मिलते हैं कि वह अपने परिवार के लि
मेरे शहर की यह बात तो नहीं ...मेरे गांव की यह बात है . . .यहाँ कोई दिवस तो नहीं मनाया जाता ...लेकिन मजदूरों को सताया भी नहीं जाता ...आज भी मजदूर मजदूरी करने जाएंगे ...शहर के वासी मजदूर दिवस मनाएंगे ..
प्यार क्या चीज है ये अच्छे अच्छे को समझ नही आता ।आजकल के बच्चे बस मोबाइल और इंटरनेट के प्यार को ही प्यार समझ बैठे है ।वो हीर रांझा,वो शीरी फरहाद,वो लैला मजनू ये तो आजकल की पीढ़ी को बस शो पीस ही लगते ह
मजदूर हूं मैं मजबूर नहीं हां मैं तुमसा नशे में चूर नहीं,निर्माता तो हूं मैं इस जग का,है फक्र मुझे कुछ गुरुर नहीं ईश्वर का दिया वरदान हूं मैं, हर प्रलय परतः निर्माण हूं मैं,नल नील सा बन