मजदूर हूं मैं मजबूर नहीं
हां मैं तुमसा नशे में चूर नहीं,
निर्माता तो हूं मैं इस जग का,
है फक्र मुझे कुछ गुरुर नहीं
ईश्वर का दिया वरदान हूं मैं,
हर प्रलय परतः निर्माण हूं मैं,
नल नील सा बन कहीं पुल बांधु
कही बंजर धर गुलशन कर दूं,
जो स्वेद से सींचू मैं ये धरा ,
हां जगमग वन उपवन कर दूं
मैं जगकर्ता , मैं विश्वकर्मा ,
मैं मायासुर , मैं ही कृष्णा,
सम्मान नहीं दे सकते अगर,
न दो घाव मुझे अपमान न दो,
पर्वत जो गिरा दूं मैं वो शक्ति,
मैं भी शिव ही स्वयं गर ध्यान जो दो....