प्यार क्या चीज है ये अच्छे अच्छे को समझ नही आता ।आजकल के बच्चे बस मोबाइल और इंटरनेट के प्यार को ही प्यार समझ बैठे है ।वो हीर रांझा,वो शीरी फरहाद,वो लैला मजनू ये तो आजकल की पीढ़ी को बस शो पीस ही लगते है लेकिन फिर भी कुछ युवा ऐसे भी है जो मेरी नजर मे इनके पदचिन्हों पर चलते दिखाई देते है कुछ ऐसा ही समझाने की कोशिश इस उपन्यास के माध्यम से कर रही हूं।
जोगिंदर सिंह बुलंदशहर के पास के गांव मे एक जाने माने परिवार से संबंध रखते थे।गांव मे बहुत बड़ी हवेली ,मान सम्मान था उनका। पुश्तैनी जमीन जायदाद तो इतनी थी कि आधे से ज्यादा गांव उनके नाम था।पिता की जमींदारी ही इतनी थी कि बंटाई पर हजारों गज जमीन दे रखी थी ।घर बैठें ही नाज पात फल सब्जी आ जाता था। नौकरों की एक फौज थी घर मे । जोगिंदर को कभी ज़मीन पर पैर नही रखना पड़ता था उससे पहले ही सब काम हो जाते थे । लेकिन जोगिंदर एक सुलझा हुआ , समझदार और स्वाभिमानी लड़का था।गांव के स्कूल से दसवीं पास करके शहर कालेज मे एडमिशन लेना चाहता था लेकिन पिताजी ये नही चाहते थे वो चाहते थे कि जोगिंदर अपनी जमींदारी देखें। जोगिंदर के पिता जी का मानना था कि लड़के शहर जाकर बिगड़ जाते है। लेकिन जोगिंदर ने भूख हड़ताल कर दी।वह मां के पास गया और आंखों मे पानी लाकर बोला,"देख लो मां। पिताजी मुझे आगे पढने के लिए नही भेज रहे है शहर। मां तुम्हें पता है मुझे पढ़ने का कितना शौक है पर पिताजी है के मुझे जमींदारी मे ही घसीटना चाहते है ।मै पढ़ कर कुछ बनना चाहता हूं मां।"
जोगिंदर की मां उसके पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली,"शांत हो जा बेटा।वैसे तेरे पिताजी की भी बात सही है तू हमारा इकलौता बेटा है अगर तू शहर चला गया तो तुम्हारे चाचा ताऊ सारी जमीन जायदाद हड़प कर जाएंगे । लेकिन कोई बात नही बेटा मुझे तेरी खुशी से बढकर और कोई खुशी नही है मै तेरे पिताजी से बात करुंगी।"यह कहकर मां ने उसके आंसू पोंछे और खाना परोस दिया अपने लाड़ले के लिए।
रात को जोगिंदर के पिताजी घर आये तो मां अपने सारे ममत्व के अस्त्र शस्त्र लेकर तैयार बैठी थी।खाना खा कर जब जोगिंदर के पिता आंगन मे खाट पर बैठे तो जोगिंदर की मां चौकी उठाकर उनके पायताने आकर बैठ गयी और पति के पैर सहलाते हुए बोली,"सुनते हो ,अपना जोगिंदर कुछ कह रहा था।"
जोगिंदर के पिता को ये पता था कि उसकी पत्नी क्या कहना चाहती है।वह थोड़ा तैश मे बोले,"क्या कह रहा था ।तुम भी आ गयी पैरवी करने । मां बेटे को ये नही पता इतनी जमीन जायदाद है उनको कौन देखेगा।अगर देख रेख नही हुई तो बाज की तरह नजरें गड़ाए बैठे है कुनबे वाले ।सब हजम कर जाएंगे।"
"देखो जी मै तो ये कह रही हूं कि अभी कौन सा आप बूढ़े हो गये है ।खेती बाड़ी का ध्यान तो आप रख ही सकते है ।अभी तो जोगिंदर बच्चा है उसे कहां समझ है इन बातों की।अगर दो तीन साल शहर पढ़ने भी चला गया तो क्या बच्चे की मन की निकल जाएगी।"
जोगिंदर की मां ने अपना अस्त्र सही समय देखकर फैंका। आंखों मे पानी लाकर बोली,"आप को भी पता है ये आप का ही खून है जिद इसमे भी कूट कूट कर भरी है।अगर घर छोड़ कर चला गया तो कही के नही रहेंगे।"
इस बात पर जोगिंदर के पिता जी थोड़ा नर्म पड़े और बोले,"देख लेना जोगिंदर की मां तुम उसे जिद करके शहर भेज रही हो ।ये लड़का वापस नही आयेगा वही शहर का होकर रह जाएगा।"
जोगिंदर की मां ने फटाफट आंसू पोंछे और बोली,"देखो जी बच्चों की खुशी मे ही अपनी खुशी है।अगर पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन गया तो अपना ही नाम रौशन करेगा।रही जमींदारी की बात तो कौन सा इसे हल चलाना है खेत मे ।खेत तो तब भी बंटाई पर है और अब भी रहेंगे।"
जोगिंदर के पिता खीझ कर बोले,"जो जी मे आये वो करो ।तुम मां बेटे की एक राय है।"
जोगिंदर की मां उठी और खुशखबरी देने के लिए जोगिंदर के पास दौड़ी दौड़ी गयी और जाकर बता दिया कि कल ही शहर जाने की तैयारी कर ले तेरे पिताजी ने हां कर दी है।
यह सुनकर कर जोगिंदर अपनी मां से खुशी से लिपट गया ।उसके सपने जो पूरे होने वाले थे।वह यह खुशखबरी अपने जिगरी दोस्त नरेन्द्र को बताने चला गया। नरेंद्र भी शहर मे रहकर पढ़ाई करने की योजना बना रहा था। दोनों दोस्तों ने तय कर रखा था कि दोनों होस्टल मे एक ही कमरा लेंगे और जी लगाकर पढ़ाई करेंगे।
ये हमेशा से होता आया है जहां पर जिस चीज का अभाव होता है उसे वहां के लोग शिद्दत से चाहते है। दोनो दोस्तों का आगे पढ़ने का मन था तो उन्होंने जी जान लगाकर दसवीं की परीक्षा अच्छे नंबर से पास की। जोगिंदर का तो अखबार मे नाम भी आया था।जब नरेंद्र को इस बात का पता चला कि जोगिंदर के पिता ने शहर जाने के लिए हां भर दी है तो वह खुश हो गया उसे सबसे ज्यादा डर शहर के माहौल से लग रहा था जोगिंदर थोड़ा चुस्त था बातचीत करने मे। नरेंद्र उसी के सहारे शहर मे पैर जमाना चाहता था।
बात तो दोस्ती पर खत्म हो जाए तो कुछ नही पर अंदर ही अंदर नरेंद्र के मन मे क्या था वो जोगिंदर भी नही जानता था दरअसल नरेंद्र एक गरीब परिवार से संबंध रखता था उसका बहुत बड़ा सपना था कि वो शहर जाए और बड़ा आदमी बने लेकिन घर के हालात ऐसे नही थे कि उसे शहर मे पढ़ने का खर्च मिल जाए तो उसने जोगिंदर के ताऊ चाचा से हाथ मिला लिया । उन्होंने एक सौदा नरेंद्र से किया कि तुम इसे कैसे भी करके शहर मे रोकें रखना हम तुम्हें शहर की पढ़ाई का सारा खर्चा देंगे। नरेंद्र को दोस्त से कोई मतलब नही था उसे तो पैसा चाहिए था इसलिए उसने जोगिंदर को उंगली लगा रखी थी "बस यार ।पहले स्थान पर आकर भी निरा गांव का बनकर रह जाएगा ।शहर पढ़ने के लिए अपने मां बाप को इमोशनली तंग कर।ऐसा कर तू भूख हड़ताल कर दे।उसी कारण जोगिंदर ने शहर जाने के लिए भूख हड़ताल कर दी थी।पर उसे क्या पता था शहर मे उसके साथ क्या क्या होने वाला है।
(क्रमशः)