बरसो मेघा रे घनन घनन,आज छाए है बादर कारे।बोले दादुर, मोर, पपीहा,पीहु पीहु कारे मेघा रे।।नाचे मन मोर पपीहा,आया सावन झूम रे।धरती ने ओढ़ी चूनर,कैसी धानी धानी रे।।चहुंओर है छाई हरियाली,कैसे बदला रूप सावन
वक़्त हर पल गुजरता हुआ,एक लम्हा है जिंदगी में।थाम सको गर वक़्त को,जिंदगी जीने की कोशिश में।।वक़्त रेत का दरिया है,जो मुट्ठी में नहीं समाता।अगर चाहो मुट्ठी में बांधना,रेत जैसे मुट्ठी से फिसलता।।जिंदगी
सपनों को साकार करने में,व्यस्त तुम इतने हो जाओ।समय ही न मिले कभी भी,कुछ और में गुम हो जाओ।।उदासी ना हो जिंदगी की,सपनों को पंख मिल जाए।उदासी के लिए वक़्त नहीं,अरमानों को पंख मिल जाए।।सपनों को जीवन देना
मैं हूं तुम्हारी हिंदी भाषा,इसको तुम पहचान लो।अस्तित्व हूं तुम्हारा मैं,मुझको तुम पहचान लो।।कर्म हूं और कृति भी मैं,अस्तित्व है यूं मुझसे जुड़ा।मर्म हूं और व्यथा भी मैं,अस्तित्व तुम्हारा मुझसे जुड़ा।।
आदर्शों की मिसाल बना के,सदा ज्ञान का प्रकाश जगाता।बाल पन महकता शिक्षक,भाग्य हमारा शिक्षक बनाता।।गुरु ज्ञान का दीप जलाकर,जीवन हमारा महकता शिक्षक।विद्या का धन देकर ऐसे,मन आलोकित करता शिक्षक।।धैर्य का हम
आंखे तो सबकी एक जैसी,देखने का अंदाज अलग होता।बातें सबकी होती अलग अलग,कहने का अंदाज अलग होता।।दिलों के एहसास की बातें,धड़कन का अंदाज अलग होता।बातें जुबां पे आती रहती,कहने का अंदाज अलग होता।।इज्ज़त शौक
ये ना सोचो कि मुहब्बत में यार से क्या मिला खुशी या आंसू मुकद्दर है किसी से क्या गिला रूहानी इश्क वाले कभी शिकायत नहीं करते बेवफाई भी कुबूल है समझेंगे है उसका सिला श्री हरि
देख कर माथे की लकीरें,चिंता का विषय कुछ लगती।सोच विचार चिंतन गहन,अकारण ही कुछ उपजती।।देख कर पत्थर पर लकीरें,न मिटने का अंदेशा देती।कभी न खत्म निशान हो,ऐसा लकीरें ये संदेशा देती।।देख कर कागज़ के पन्नों
पूर्णिमा का चांद देखो,कैसे बिखेर रहा चांदनी।तारे भी जग मग करते,रौशन हो रहे संग चांदनी।।पूर्णिमा की रात हम तुम,कुछ बात संग चांदनी में।कैसे अपनी छटा बिखेरी,कुछ बात इस चांदनी में।।पूर्णिमा की इस रात में,
जिंदगी आगे बढ़ने का नाम,यूं तो रुकने का मतलब नहीं।रुक गए तो स्थिरता होती,अस्थिर रुकने का मतलब नहीं।।खुद ही लड़नी पड़ेगी,अपनी तो लड़ाई उसकी।होता रुकने का मतलब नहीं,आगे बढ़ती लड़ाई उसकी।।दिशा निर्देशन स
खोया खोया चांद आज,गुम हो गई चांदनी इसकी।आज अंधेरी रात आ गई,कहां गई है चांदनी उसकी।।खोया खोया चांद आज,कहां गए सितारे उसके।जो टिमटिमाते थे प्रतिपल,रौशन करते थे जो प्रतिपल।।खोया खोया चांद आज,सोचता रहता ह
इंसा की घिसी हुई चप्पल,संघर्ष जीवन में बयां करती।भागदौड़ और मशक्कत ऐसी,छुपे हुए दर्द को बयां करती।।कठिन रहगुजर जिंदगी में,दर्शाती है घिसी हुई चप्पल।जीवन की कठिनता का सामना,काम आती घिसी हुई चप्पल।।जूझत
दिल एक तमन्नाएं अनेक,कैसे पूरी होगी संसार में।तमन्नाओं से संसार बंधा,बसी हुई इस संसार में।।जिंदगी के आंचल में,ओढ़ रखी चुनरी ऐसे।तमन्नाएं जज्बातों से जुड़ी,पूरी हो जाए ये कैसे।।तमन्ना तो सिर्फ तमन्ना ह
सुख और उम्र का तालमेल,आपस में कब बनता है।कैसे उम्र ये कटती रहती,सुख दुःख जीवन में रहता है।।सुख और समृद्धि जीवन में,शांति जीवन में लाती है।आशा और निराशा के बीच,भंवर में डोलती रहती है।।सुख कब मिलता जीवन
आज हमारी ईश्वर में आस्था,है कितनी यह देखो जरा।कोई तो करता पूजा साधना,कोई करे ऐसे खिलवाड़ जरा।।कोई उड़ाए मजाक आस्था का,कोई आस्था को अपना संसाधन।कोई करे ईश्वर की अर्चना याचना,कोई समझे पब्लिसिटी का साधन।
ओस की बूंदें धरा पर,ऐसे पल्लवित होती हैं।कदम धरा पर पड़ते ही,तन मन स्फूर्ति भरती हैं।।ओस की बूंदें पंखुड़ीयों पर,पुष्प भी खिल उठता है।कोमल कोमल सी कोपलें,खुशबू से मन खिल उठता है।।आसमान से गिरी धरा पर,
सुबह सुनहरी धूप खिली,आंगन में चारपाई बिछी।आ गई दादी चारपाई पे,आंगन में चारपाई बिछी।।हुए एकत्रित बच्चे सारे,करते सब दादी दादी जी।दादी जी ने गले लगाया,आओ मेरे प्यारे बच्चों जी।।चाय नाश्ता है तैयार सब,मा
समझते हो गर कर्म को,जरूरत नहीं धर्म समझने की।पाप क्या और पुण्य क्या,कर्म ही करते रहने की।।कर्म तुम्हारे जुड़े पुण्य से,फल अच्छे तुम्हें मिलेंगे।बुरे कर्म तो जुड़ेंगे पाप से,फल उसके भी मिलेंगे।।कर्म हम
नादान परिंदे होते हैं,उड़ने की कोशिश करते। रहते हैं अपने बसेरे में,उड़ने की ख्वाहिश रखते।।नादान परिंदे होते हैं,आकाश छूने का दंभ भरते। कोशिशें नाकाम हो जाती,फिर भी कोशिश करते रहते।।नादान परि
सूरज ने बोला चंदा से,मैं दूल्हा तुम दुल्हन हो।शाम ढले आया सूरज,चंदा से तारे हैं बाराती हो।।शाम से कहते तारे सारे,आओ इस जश्न में शामिल हो।तारे भी बोले सारे मिलकर,तैयारी में हम सब शामिल हो।।हम तारे है ब