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मुक्तक

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कौन हूं मैं? तलाशती अपनी ही पहचानसागर की बेपरवाह लहर हूंया हूं आसमान की शानखोमोशी से चल पड़ी तलाशने अपना वजूदकौन हूं मैं कहा हूं मैं मौजूदमधुर महकता हूं उपवनया सुना वीराना मेरा जीवनसुकून सा मौन हूंया

रिमझिम है तो सावन गायब,बच्चे हैं तो बचपन गायब।क्या हो गई तासीर खुदाया,अपने है तो अपनापन गायब।।चक्रव्यूह रचना अपनों से सीखो,अपने ही अपनों को सिखाते।विश्वास न करना तुम कभी,अपने ही ये तुमको सिखाते।।संभाल

एक मासूम जान की कीमत,समझ नहीं सकता है कोई।मां ही समझ सकती है उसे,और नहीं समझ सकता कोई।।मासूम का रुदन उस दर्द को,मां ही है समझ सकती।करुणा भरी पुकार उसकी,मां ही तो फिर समझती।।एक मासूम जान उसकी,मां के आं

कल बुरा था ऐ मुसाफिर,आज अच्छा हो जाएगा।वक़्त ही तो थमा मुसाफिर,रोके से क्या रुक जाएगा।।सफर की शुरुआत जो की,रास्तों से वो नहीं घबराते हैं।हौसला रखो बढ़ाने का कदम,मुसाफिर रास्ते खुद बनाते हैं।।रास्ता ऐ

आसमान के पंछी उड़ते,फैला कर पंख पसार।ऊंची ऊंची उड़ाने भरते,अपने पंखों को पसार।।ख्वाहिशें करते रहते पंछी,चमकुं सूरज बन आसमां में।सूरज बन के किरणें फैलाऊं,धरती को ताकुं आसमां में।।ख्वाहिश पंछियों की होत

आकाश से परे एक दुनिया,सजाया देश की बेटियों ने।शेरनियों की भांति गर्जना की,मान बढ़ाया देश की बेटियों ने।।धरती का कलेजा फटा होगा,रोते हुए खुशी से झूमता होगा।आंसूओं से गला रूंधा होगा,रोते हुए गले लगाया त

समय और शब्द का तुम,न लापरवाही से करो प्रयोग।वरना दुनिया की भीड़ में,होगा तुम्हारी ही उपयोग।।गलत बोलने पर कभी,वह वापस नहीं आता।शब्द तीर की तरह होता,कमान में वापस नहीं आता।।जो कल समय था आज नहीं,आज के पल

टिमटिमाते सपनों का,आना और जाना।रातों को भी नींद में,उठ कर बैठ जाना।।पूरे होंगे सपने सारे,ये आशा बनाए रखना।निराशा का तिल भर भी,न छू कर भी जाना।।कहते हैं कि दुनिया में,उम्मीद पे कायम है।फिर भी सपने पूरे

मेहनत लगती है हमारी,सपनों को सच करने में।इरादा है सपने देखने का,हौसलों को सच करने में।।बुलंदियों तक पहुंचने में,मेहनत से गुजरते हैं हम।इरादा नेक हो हमारा गर,हौसलों से उड़ान भरते हम।।बरसों लग जाते हैं

बारिश की बूंदें भले छोटी हो,उनका लगातार बरसना लेकिन।नदियों का बहाव बन जाता,उनका लगातार बरसना लेकिन।।बारिश की बूंदों से बढ़ता जलस्तर,जलस्तर बढ़ने से बनती है नदिया।फिर सैलाब उमड़ता इस कदर,सागर में मिल ज

ऊपरवाले की आवाज़ सुनो,कहता है वह सभी से कुछ।जागृत रहो अपने में तुम,कहता है वह सभी से कुछ।।मिल रहा है जो कुछ,तुम्हें की वह बेहतर है।बखूबी वह तो जानता,तुम्हें की वह बेहतर है।।तुम अपने लिए नहीं जानते,क्य

सुनहरी सुबह ने धरा पर,कैसे अपनी लालिमा बिखेरी।सूरज की किरणों ने अपनी,धरा पर अपनी रौशनी बिखेरी।।बसंत हुआ अवतरित धरा पर,पेड़ भी लहराने लगे पवन से।सूरज भी आसमान में देखो,रौशन हो रहा है इस कदर से।।उड़ने ल

सतरंगी इन्द्रधनुष ने आसमान में,खीचीं है अपनी क्षैतिज रेखा।रंग बिरंगे रंगों से सजी देखो,एक छोर से दू जी क्षैतिज रेखा।।लाल, बैंगनी, नीला, पीला,हरा, गुलाबी और है नारंगी।इन्द्रधनुष ने आसमान में देखो,

ओ री मेरी सोनचिरैया,फुदकती रहती घर आंगन में।एक छोर से दूजे छोर तक,पंख पसारे रहती घर आंगन में।।ओ री मेरी सोनचिरैया,बैठ जाती हो अटरिया पर।दाना पानी लेकर तुम,चली जाती हो अटरिया पर।।ओ री मेरी सोनचिरैया,उड

न पूछो क्या पहचान हमारी है,आजाद भारत देश की कहानी है।शान तिरंगा ये जान हमारी है,तिरंगे की यह शान पुरानी है।।आजाद वतन के हम बाशिंदे,भाषाएं भले ही हमारी अनेक।अनेकता में एकता हमारी जान,तिरंगा ही हमारी शा

सुख दुःख तो मेहमान हैं,बारी बारी से ये आएंगे।एहसासों से हम नहीं गुजरेंगे,तो अनुभव कहां से लाएंगे।।आसानी से सब मिल जाता,न मिलता तो किस्मत होती।बात पते की सुन लो भाई,भरोसे की क्या बात होती।।हम कोशिश भी

छू लो आसमान तुम,पंख पसार पंछी की तरह।छू लो उन बुलंदियों को,पंख पसार पंछी की तरह।।छू लो आसमान तुम,हो कामयाबी हासिल तुम्हें।न डगर पे आए बंदिशे,मंजिल मिल जाए तुम्हें।।छू लो आसमान तुम,अहंकार न हो कतई तुम्

मैं हूं एक कविता,भावों की अभिव्यक्ति।उमड़ते घुमड़ते विचारों की,सुन्दर सी ये अभिव्यक्ति।।मैं हूं एक कविता,मन में ख्वाबों को सजाती।विचारों को व्यक्त करने में,कागज का सहारा ढूंढती।।मैं हूं एक कविता,शब्दो

बारिश में छतरी होती,जो उपयोग में है आती।बारिश रोक नहीं सकती,खड़े रहने का साहस देती।।आत्मविश्वास एक बल है,जो साहस से है आता।सफलता भी हमको यही,संघर्ष ये है हमें सिखाता।।प्रेरणा छतरी से है मिलती,बारिश मे

वक़्त एक समय का पहिया,निरंतर होता है ये गतिमान।कल, आज और कल में,निरंतर रहता है ये गतिमान।।हर समय जिंदगी में तुम,मुस्कराते रहो सदा ही ऐसे।जो छूट जाए ऐसे यूं पीछे,कोई गम भी न हो ऐसे।।समय का पहिया क

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