निर्धनता
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निर्धनता तो,
खेत में बैठे उस काम-चोर -
बैल के तरह होती है,
जिसे किसान के अनाचार,
अत्याचार....
पर भी लज्जा नही आती...
या फिर,
अति भोजन प्रेमी उस ब्रह्मण-
जैसा...
जिसे यजमान गृहणी के,
तीक्ष्ण दृष्टि की बिल्कुल-
परवाह न हो...
सम्पूर्ण दिवस के...
सैकड़ों उपक्रम के बाद भी,
जब जेब का भार पूर्वत रहता है...
तब,
झोला पटक देता हूँ,
गृहणी के आगे....
जैसे भिक्षुक पटक देता है-
अपना कटोरा....
और रात्री...
किसी भयानक स्त्री की तरह...
जिसे देखते ही निद्रा की-
कल्पना शून्य हो जाये...
......राकेश पाण्डेय