थी उजाली रात,
जब हम-तुम मिले थे,
फूल जीवन में,
हजारों ही खिले थे,
जागते थे हम,
जगत सोया हुआ था,
हर कोई सपनो में,
अपने खोया हुआ था,
वायु पत्तों को,
सहला रही थी,
कान में कुछ कहके,
हुलसा रही थी,
झींगुरों की शोर,
सहमा रही थी,
पर रात रानी,
वायु को महका रही थी,
फिर अचानक थाम कर,
बाहें हमारी,
खोल कर प्रेम की
राहें हमारी,
फूल के जैसे,
दोनो खिले थे.....
थी उजाली रात,
जब हम-तुम मिले थे,
फूल जीवन में,
हजारों ही खिले थे,
थी सुहानी रात ,
और दस्तूर भी था,
था नखत पर,
आधा चंदा,
और यहां,
पूर्ण भी था,
उसमे था दाग,
ये निर्मल सलोना,
है मिला जो भाग्य से,
इसको ना खोना,
प्रेम के परिपूर्ण पर,
अभिसार को,
मैंने तुमसे मांगा था,
जो प्यार को,
हाय कितना दर्द तब,
तुमने सहा था,
वक्ष पर धर शीश,
जब तुमने कहा था,
मैं अकेली हूँ कहां,
है साथ मेरे,
पित्र का सम्मान,
कुल का मान मेरे,
हो विवश हृदय के,
चली आयी जो मैं,
प्रेम में बंधकर,
चली आयी जो मैं,
तुम पुरुष हो,
तुम्हारा कुछ नही,
स्त्रियों का जीवन,
तो कांटों तले है,
तज नही सकती,
मैं प्रेम में सम्मान को,
नैनो में भले लाखों,
सपने पले थे...
थी उजाली रात,
जब हम-तुम मिले थे,
फूल जीवन में,
हजारों ही खिले थे,
हाय रे ईश्वर,
निर्मम तेरा परिहास है,
ना मैं उसके छौह हूँ,
ना ओ हमारे पास है,
मिलना फिर मिलकर विछड़ना,
कैसा तेरा खेल है,
जब अलग करना ही होता,
तो क्यों कराता मेल है,
इस तरह घुट-घुट कर,
जीवन कोई जीवन नही,
मैं अधूरा हूँ यहाँ,
वो अधूरी है कहीं,,,
हो गये हम अकेले,
साथ मिलकर ही चले थे....
थी उजाली रात,
जब हम-तुम मिले थे,
फूल जीवन में,
हजारों ही खिले थे,
राकेश