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प्रेम या..

27 जुलाई 2022

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मन मेरा एकाकी था,

हाँ मन मेरा एकाकी था,

हाँ कुछ ना इसमे बाकी था.....

फिर एक दिन तुम आ मिली,

सुर -तरंगित हो गये,

गीत यौवन के शरण में,

अधरों पे इंगित हो गये...

तुम्हे देखकर ऐसा लगा,

नवदिप्ति-सुभ्रा सी छठा,

मुख कांतिमय,

हिमकर सा था,

विसरा मैं सुध-बुध,

संज्ञान ना था,

मेरा मुझे ही भान ना था,..

.तत्क्षण ही तुमने पूछा मुझे,

क्या देखते हो सखे,..?

स्वर-बद्ध लाखों रागनी,

हाँ एक स्वर में रागिनी,

एकसाथ ही बजने लगी,

जैसे ज्ञानी-ज्ञान पाकर,

हाँ मोह के उसपार जाकर,

भिक्षुक कोई दान पाकर,

हाँ कवि सम्मान पाकर,

जैसे मारुति लंका के पथपर,

मां सीता का भान पाकर,

हाँ सीता का भान पाकर,,

जैसे रूग्ण को औषध मिला हो,

हाँ फूल उपवन में खिला हो,

हाँ फूल पतझड़ में खिला हो,

जैसे चातक पा लिया हो, स्वाति के एक बूंद को,

हाँ स्वाति के एक बूंद को.....

...वैसे मुझे तुम मिल गयी,

यौवन की डाली खिल गयी,

फिर नित नये सोपान से,

होते उदित ही भानु के,

हम युगल बन फिरने लगे,

नव नीर में तिरने लगे,

हाँ युगल बन फिरने लगे,

हाय दुर्जनो के टीस बन,

आंखों में चुभने लगे,

हाँ कंटक बन चुभने लगे,

...फिर प्रेम यूँ बढ़ता गया,

नित नबीन अर्थ गढ़ता गया,

हाँ दिनकर सम चढ़ता गया,

वन-बाग-उपवन-वाटिका,

बैठे तृण-अट्टालिका,

हाँ नव-तरु-तालिका,

ले स्वप्न को खोये हुऐ,

जीवन शरण सोये हुऐ,

अपलक नयन खोए हुऐ.....

....

देखा था तेरे तात ने

देखा...था...तेरे...तात...ने..

...हाय कैसी विपदा में फँसे,

हम लज्जा से जाते धसे,

थे आक्रांत अपने कर्म से..

भर नेत्रों में ज्वाला विकट,

आह तात आये निकट,

रे कुलक्षणी-कुलघातनी,

कुलनासिनि-कुलडासिनी,

लज्जा तुझे क्यों आई ना,

जो अपने पे पछताई ना,

तुमको जरा सा भान ना,

मर्यादा का कुछ ज्ञान ना

हे अभागी एक कार्य कर,

दे विष मुझे या डूब मर,

हाँ तू डूब मर...

..हम ब्राह्मण है कुलीन,

ये तो है कुल से हीन,

हाँ ये तो है कुल से हीन,....

...

मैं विवश लाचार सा,

नेत्र नम था खड़ा,

था प्रेम धरती पर पड़ा,

था सोचता मैं खड़ा,

क्या प्रेम से कुल है बड़ा,..?

हाय प्रेम से कुल है बड़ा,....

बांह धर जबरन गये,

सुता संग निज धाम को,हाँ गये निज धाम को,

कुछ दिवस, कुछ मास तक,

हाँ विरह-उच्छवास तक,

फिर मिलन ना हो सका,

बिल्कुल मिलन ना हो सका,

दृग नयन ना हो सका...

...एक दिन तरु-छाई में,

पास की अमराई में,

हम जहाँ पर थे खड़े,

सामने ओ आ पड़े,

हाँ सामने ओ आ पड़े,

चौड़ी पाजेब थी,

विछुआ महावर से सजी,

रक्त-वर्णी पटोला,

ग्रीवा सुन्दर हार था,

हाँ यौवन सदा वहार था,

कर्ण, नासा में शुशोभित,

पूर्ण ही श्रृंगार था,

फिर दृष्टि मस्तक पर पड़ी,

थी एक रेखा सिन्दूर की,

हुआ मन व्यथित,निस्तेज सा,

हाँ सब चेतना कहीं खो गया,

फिर सम्भल कर उनसे कहा

...

...ये बता री दग्धया,

हाँ बता री निर्मया,

नेह से यों भागकर,

हृदय का परित्याग कर,

इस भरे लोचन नीर को,

मुझ आदग्धा-अधीर को,,

भूल बैठी क्या ओ प्रीति की बातें सभी,

प्यार की अभिसार की व्योहार की रातें सभी,

हाँ प्यार की रातें सभी,

तब कुलीना-लज्जाहीना,

स्वेत मोती की नागिना ताप-मीना,

ने कहा उच्छवास कर,

लज्जा और भरम त्यागकर,

हाँ अपनी लज्जा त्यागकर....

.....खेल था ओ बचपने का

क्यों खार खाये बैठे हो,

खेल और विनोद को हृदय से लगाये बैठे हो,

हाँ मन में दबाये बैठे हो,

मैं कुलीना कुल की कन्या,

पतित तेरा कुल -मान है,

हाँ क्या तेरा सम्मान है,

मैं पुहुप की सुन्दर क्यारी..

कांटों भरा तू सेज है,

हाँ तू निरा-निस्तेज है,.....

....आह दुस्टा मेरी सृस्टा,

निष्ठुर हो गया भाग्य है,

मां धरा अब तुम फटो,

दो शरण में स्थान अब, दो शरण में स्थान अब...

हाँ शरण में स्थान अब.....

..राकेश

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रचनाएँ
कवित्त कल्पना
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ये किताब उन कविताओं का संग्रह है...जो मैंने जीवन के संघर्षों में महसूस किया है...इनमे कुछ छोटी कुछ बड़ी कविताएँ है जो निःसंकोच आपको प्रभावित करेंगी..
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निर्धनता

27 जुलाई 2022
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निर्धनता *********** निर्धनता तो, खेत में बैठे उस काम-चोर - बैल के तरह होती है, जिसे किसान के अनाचार, अत्याचार.... पर भी लज्जा नही आती... या फिर, अति भोजन प्रेमी उस ब्रह्मण- जैसा... जिसे यजमान गृहणी

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थी उजाली रात..

27 जुलाई 2022
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थी उजाली रात, जब हम-तुम मिले थे, फूल जीवन में,  हजारों ही खिले थे, जागते थे हम, जगत सोया हुआ था, हर कोई सपनो में, अपने खोया हुआ था, वायु पत्तों को,  सहला रही थी, कान में कुछ कहके, हुलसा रही थी, झींगुर

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नैनन में तुम्हे भर लूँगा

27 जुलाई 2022
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करियारी-कारी-काजर सी, इन नैनन में तुम्हे भर लूंगा, इकबार अगर जो आ जाओ , तो प्यार तुम्हे मैं कर लूंगा... तुम चंचल-चपल-चकोरी सी, तू वरसाने की गोरी सी, तुम अमृत भरी कटोरी हो, तुम गुड़ की मीठी ढेरी हो,

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धर्म का क्या मूल चिंतन?

27 जुलाई 2022
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धर्म का क्या मूल चिंतन?? ********************* पड़ रही दिन-रात प्रतिक्षण, हवन-कुण्ड में समिधायें है खड़ा मस्जिद नमाजी, सिर को सजदे में झुकाये हो रही गिरजा सुशोभित, प्रार्थना  के जोर से गूंजता पावन गुरु

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विसंगति

27 जुलाई 2022
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विसंगति ************ नही देखा नियति को- होते लज्जाशील या, फिर विलाप करते, अपने विषंगति कृत्य पर-- किन्तु देखा है--- कठोर पर्वतों के पांव में, उगते छालों को-- हाँ देखा है-- घने वृक्ष के जड़ों को, धूप

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सपन सलोना

27 जुलाई 2022
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कोई स्वपन संजोने लगता है,, ----------------------------------^^^ कूँ -कूँ करती कोयल की, जब गीत सुहानी लगती है,,, मीठी-मीठी स्वर कोई, जब जानी-पहचानी लगती है, जब प्रेम कापोलें भरतें है, जब मन मे कलरव हो

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प्रेम या..

27 जुलाई 2022
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मन मेरा एकाकी था, हाँ मन मेरा एकाकी था, हाँ कुछ ना इसमे बाकी था..... फिर एक दिन तुम आ मिली, सुर -तरंगित हो गये, गीत यौवन के शरण में, अधरों पे इंगित हो गये... तुम्हे देखकर ऐसा लगा, नवदिप्ति-सुभ्रा सी

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सुनो.! कल आना

27 जुलाई 2022
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सुनो, कल तुम भी आना, मैं भी आऊंगा, उसी पेड़ के नीचे, हरी घास पर, बैठेंगे कुछ बाते करेंगे, सोचेंगे कल के बारे में, जब तुम और मैं मिलकर, हम हो जाएंगे, पर हाँ....... तुम जो डरती हो, समाजिक ताने-बाने से,

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हाँ शायद..

27 जुलाई 2022
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हाँ शायद तुमने, सीख लिया होगा शायद तुमने, अबतक मन मार कर जीना... हाँ शायद..... हाँ शायद, तुम देखती होंगी जब,  कभी दर्पण में प्रतिविम्ब मेरा बन्द कर लेती होगी नेत्र- भय से...... शायद, जो अबतक पसरा ह

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तुम मत बोलो सॉरी जी

28 जुलाई 2022
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तुम मत बोलो 'सॉरी जी' ******************** हर बार तड़पता रहता हूँ, पथहीन भटकता रहता हूँ, मेरा, स्वप्न धूमिल हो जाता है, मेरा,मौन शिथिल हो जाता है, मैं और विकल हो जाता हूँ, खुद ही विह्वल हो जाता हूँ,

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प्रेम प्रमाण

28 जुलाई 2022
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मैं क्या प्रमाण दूँ तुम्हे- अपने प्रेम का हाँ दे देता, अगर होता प्रचलन में- कोई अधोलिखित पत्रावली हाँ अगर सत्यापित ही करना है- तो बन्द कर लो अपने नेत्र, और आभाष करो अपने अधरों पर, मेरे अधरों की गर्माह

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नेह में कोई समाये देह में कोई समाये

28 जुलाई 2022
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नेह में कोई समाये.. -------------------------- हाय ये कैसी विसंगति, कैसी निष्ठुर नियति हाय... नेह में कोई समाये... देंह कोई और पाये... जब वस्त्रों से श्रृंगारों से-- साजन में खोई होंगी.. तब कितनी

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स्त्री"

29 जुलाई 2022
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स्त्री,,,😢😢 ************ मैंने आदिकाल से , संघर्षों को देखा है, सहा है, मेरे ही आंखों से पानी, आँचल से दुध बहा है, पुरातन में जब, तुम बिना वस्त्र , उदर-छुधा मिटाने को, भटकते थे कंदराओं में, और फिर

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फिर तो जीना बेमानी है

31 जुलाई 2022
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फिर तो जीना बेमानी है....................................कतरा-कतरा, नदिया,दरिया-सब आंखों का पानी है...तुमको देखूँ और आह! न निकले-फिर तो जीना बे-मानी है..जब कोरे पर कोई रंग चढ़ जाये-फिर दूजा रंग न चढ़ता

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स्त्री..२

31 जुलाई 2022
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'स्त्री'''''__कई बार,बार-बार।।आलम्ब से गिरी हूँ मैं,,..कभी तत्काल,कभी कुछ क्षण ठहरी हूँ मैं,,,,😢आह री विडम्बना !!!अपनी नारित्व पर ,अभिमान करूँ,या भोग्या का ,अपमान सहूं।।जब कोई? ????पिता तुल्य पुरुष न

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परिणाम क्या है..?

31 जुलाई 2022
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परिणाम क्या है****************कर लिया जो प्रेम तुमसे,अब मगर मैं सोचता हूँइस अनोखे प्रेम का-- फिर कहो परिणाम क्या हैतुम अधूरी हो कहींहम अधूरे हैं कहींइस अधूरी सी कहानी --का कहो अंजाम क्या है.....ज

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और तुम्हे खो दिया

31 जुलाई 2022
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और , तुम्हे खो दिया-------------------------------------भाग्य के लेखे को, पल में धो दिया।एक भूल की, और तुझे खो दिया।।तुमने,,,,,....कई बार मेरेह्रदय से लग के,माँगा था एक वादा।की थी पहल तुमने,

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